India News: जस्टिस सूर्यकांत भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे। मौजूदा CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ ने उनके नाम की सिफारिश की है। जस्टिस सूर्यकांत 24 नवंबर को शीर्ष न्यायिक पद संभालेंगे। वह नौ फरवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होने तक इस पद पर रहेंगे।
उनका कार्यकाल लगभग 15 महीने का होगा। जस्टिस सूर्यकांत के पास दो दशक का समृद्ध न्यायिक अनुभव है। वह अनुच्छेद-370, पेगासस और लैंगिक समानता जैसे महत्वपूर्ण मामलों में फैसले दे चुके हैं।
शिक्षा और करियर का सफर
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म हरियाणा के हिसार जिले में हुआ था। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। स्नातकोत्तर में उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वह एक छोटे शहर के वकील से देश के सर्वोच्च न्यायाधीश बने हैं।
उन्हें 2018 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 2019 में वह सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बने। सर्वोच्च न्यायालय में उन्होंने 300 से अधिक पीठों में कार्य किया है।
प्रमुख फैसले और योगदान
जस्टिस सूर्यकांत अनुच्छेद-370 को रद्द करने वाली पीठ का हिस्सा रहे। उन्होंने बिहार मतदाता सूची संशोधन मामले में महत्वपूर्ण निर्देश दिए। पेगासस स्पाइवेयर मामले की जांच समिति के गठन में भी उनकी भूमिका रही।
उन्होंने राजद्रोह कानून को स्थगित रखने का निर्देश दिया था। लैंगिक समानता के मामलों में उनके फैसले ऐतिहासिक रहे। उन्होंने बार एसोसिएशन में महिलाओं के लिए आरक्षण का समर्थन किया।
संवैधानिक मामलों में भूमिका
जस्टिस सूर्यकांत राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहे हैं। यह मामला राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों से जुड़ा है। इस फैसले का कई राज्यों पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
वह एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे संबंधी मामले की पीठ में भी शामिल रहे। उन्होंने वन रैंक-वन पेंशन योजना को संवैधानिक रूप से वैध बताया। सशस्त्र बलों में महिला अधिकारियों के मामले में भी उन्होंने महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं।
सामाजिक न्याय के मामले
जस्टिस सूर्यकांत ने एक महिला सरपंच को बहाल करने का आदेश दिया। उन्होंने मामले में लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर किया। उनकी पीठ ने दिव्यांग लोगों का उपहास करने वाले कॉमेडियनों को फटकार लगाई।
उन्होंने केंद्र सरकार को ऑनलाइन सामग्री के विनियमन के लिए दिशानिर्देश बनाने का निर्देश दिया। मध्य प्रदेश के एक मंत्री की टिप्पणी पर उनकी पीठ ने सख्त रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि मंत्रियों को जिम्मेदारी के साथ बोलना चाहिए।
आपराधिक न्याय में भूमिका
जस्टिस सूर्यकांत ने अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का नेतृत्व किया। उन्होंने सीबीआई से पिंजरे में बंद तोता होने की धारणा दूर करने को कहा। पितृत्व विवादों में डीएनए परीक्षण के मामले में उन्होंने गोपनीयता के महत्व पर जोर दिया।
उनकी पीठ ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं भी तय कीं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं है। पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने वाले मामलों में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
भविष्य की चुनौतियां
जस्टिस सूर्यकांत को लगभग 90,000 लंबित मामलों का सामना करना होगा। उनके सामने न्यायिक प्रणाली को और सशक्त बनाने की चुनौती होगी। संवैधानिक मामलों की सुनवाई उनके कार्यकाल की प्रमुख विशेषता रहेगी।
न्यायिक स्वतंत्रता और जवाबदेही के मुद्दे भी महत्वपूर्ण होंगे। न्याय तक पहुंच बढ़ाने के उपायों पर ध्यान देना होगा। तकनीकी के उपयोग से न्यायिक प्रक्रियाओं को सुगम बनाना एक बड़ी चुनौती होगी।
