New Delhi News: आतंकी फंडिंग मामले में जेकेएलएफ चीफ यासीन मलिक की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। NIA ने टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक (JKLF chief Yasin Malik) के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) का रुख किया है। मालूम हो कि आतंकी फंडिंग मामले में यासीन मलिक आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। ट्रायल कोर्ट ने पिछले साल यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। एनआईए की ओर से इस मामले में यासीन मलिक के लिए मौत की सजा की मांग किए जाने से केस में नया मोड़ आ गया है।
यासीन मलिक पर दो हाई प्रोफाइल मामले में जम्मू चल रहे हैं। यासीन को जम्मू-कश्मीर में 1990 के दौरान अशांति के लिए जिम्मेदार प्रमुख चेहरों में से एक माना जाता है। यासीन उन अलगाववादियों में प्रमुख चेहरा रहा है जिनके भड़काने पर जम्मू-कश्मीर में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़की थी जिसकी वजह से बड़ी तादाद में कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ था। यासीन पर 8 दिसंबर 1989 को रुबैया सईद के अपहरण का मामला चल रहा है। यही नहीं यासीन 25 जनवरी 1990 को 4 वायुसेना के अधिकारियों की हत्या के मामले में भी आरोपी है।
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और अलगाववादी नेता यासीन मलिक को मौत की सजा देने की मांग की।
एजेंसी (National Investigation Agency, NIA) की ओर से याचिका को जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की पीठ के समक्ष 29 मई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। पिछले साल 24 मई को दिल्ली की एक निचली अदालत ने जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख को कठोर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के तहत विभिन्न अपराधों के लिए दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।
ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि यासीन मलिक के अपराध ‘भारत के दिल’ पर चोट करते हैं। इन अपराधों का मकसद भारत पर हमला करना और भारत संघ से जम्मू-कश्मीर को बलपूर्वक अलग करना था। अदालत का कहना था कि अपराध अधिक गंभीर तब हो जाता है क्योंकि यह विदेशी शक्तियों और आतंकवादियों की सहायता से किया गया था।
अपराध की गंभीरता इस तथ्य से ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि यह एक कथित शांतिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की आड़ में किया गया था। अदालत की ओर से नोट किया गया कि मामला दुर्लभतम नहीं था, जिसमें मौत की सजा सुनाई जाए, इसलिए कोर्ट ने सजा-ए-मौत के लिए एनआईए की मांग को खारिज कर दिया था।
यासीन को आजीवन कारावास दो अपराधों के लिए दिया गया था। इसमें एक आईपीसी की धारा 121 के तहत भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना जबकि दूसरा यूएपीए की धारा-17 के तहत आतंकी गतिविधियों के लिए धन मुहैया कराना था। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, आजीवन कारावास का अर्थ है अंतिम सांस तक कारावास, जब तक कि सजा को कम नहीं किया जाता है। मलिक ने पिछले साल 10 मई को दिल्ली की अदालत के समक्ष कहा था कि वह खुद के खिलाफ लगाए गए आरोपों का बचाव नहीं कर रहा है जिनमें आतंकवाद और देशद्रोह के कृत्य शामिल हैं।