Jharkhand News: झारखंड हाईकोर्ट ने एक वकील द्वारा दी गई बिना शर्त माफी को स्वीकार कर लिया है। इस वकील पर अदालत में जोर से बोलने और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की धमकी देने का आरोप लगा था। न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी ने वकील राकेश कुमार के खिलाफ अपने पिछले आदेश की प्रतिकूल टिप्पणियों को हटा दिया। अदालत ने कहा कि माफी की भावना से संतुष्ट होने के बाद वकील को एक मौका दिया जाना चाहिए।
अदालत ने अपने 25 सितंबर के आदेश में कहा था कि वकील का व्यवहार न्याय प्रशासन में बाधा डालने के समान था। इसे जज पर हमला बताया गया था जिसकी सजा अवमानना के तहत होनी चाहिए। न्यायाधीश ने कहा था कि ऐसी गुंडागर्दी को बिना रोके छोड़ना गलत संदेश देगा। इससे अदालतों के प्रति लोगों का विश्वास कमजोर हो सकता था।
हालांकि, बार के सदस्यों ने अदालत से वकील के प्रति नरम रुख अपनाने का अनुरोध किया। उन्होंने आपराधिक अवमानना का मामला न चलाकर एक अवसर देने की बात कही। इस पर अदालत ने मामला झारखंड राज्य बार काउंसिल के पास भेज दिया था। इसके बाद वकील ने अदालत के समक्ष बिना शर्त माफी मांगी।
वकील ने अपनी याचिका में कहा कि वह भविष्य में कभी भी ऐसा आचरण नहीं दोहराएंगे। उन्होंने अपनी माफी स्वीकार करने और बार काउंसिल की कार्यवाही से छूट पाने की गुजारिश की। अदालत ने इस माफी और भविष्य के अच्छे व्यवहार के वादे को गंभीरता से लिया।
अदालत ने कहा कि आपराधिक अवमानना का कानून जनता के विश्वास की रक्षा के लिए है। यह अदालतों की निष्पक्षता बनाए रखने में मदद करता है। इस कानून के तहत औचित्य की दलील देने की अनुमति नहीं है। ऐसा इसलिए है ताकि लोग अदालतों के खिलाफ विवाद न खड़ा कर सकें।
माफी स्वीकार करने का कारण
अदालत ने कहा कि वकील की माफी में ईमानदारी देखी गई। बार के अध्यक्ष और सचिव सहित अन्य सदस्यों ने भी पूरे मामले पर खेद व्यक्त किया। अदालत ने कहा कि सजा की एक सीमित भूमिका होती है। किसी सामाजिक कुरीति को केवल कानूनी सजा देकर खत्म नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने जोर देकर कहा कि अवमानना में सजा का मुख्य उद्देश्य कानून के शासन को बनाए रखना है। इसका लक्ष्य न्याय प्रशासन में लोगों का विश्वास कायम रखना है। इसलिए माफी की ईमानदार भावना को देखते हुए इसे स्वीकार करना उचित समझा गया।
आदेश में संशोधन
माफी स्वीकार करने के बाद अदालत ने 25 सितंबर के अपने आदेश से वकील के खिलाफ की गई प्रतिकूल टिप्पणियां हटा दीं। साथ ही झारखंड राज्य बार काउंसिल से अनुरोध किया कि वह वकील के खिलाफ कोई और कार्यवाही न करे। अदालत ने कहा कि बिना शर्त माफी स्वीकार करने के बाद अब मामला आगे नहीं बढ़ेगा।
इस फैसले के साथ ही अदालत ने इस याचिका का निपटारा कर दिया। यह मामला अदालती व्यवहार और व्यावसायिक नैतिकता पर एक महत्वपूर्ण बहस छोड़ गया है। यह दर्शाता है कि न्यायालय कठोरता और दया के बीच संतुलन बनाने में सक्षम है।
