Jammu Kashmir News: जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक बहस बन गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार के एक साल पूरे होने पर यह मुद्दा फिर से चर्चा में है। सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए बनाई गई कैबिनेट उप-समिति की रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। अब यह रिपोर्ट उपराज्यपाल के पास अंतिम मंजूरी के लिए भेजी गई है। इस पूरे मामले ने प्रदेश की राजनीति को गर्मा दिया है।
पिछले साल केंद्र शासित प्रदेश के दौरान उपराज्यपाल ने पहाड़ी समुदाय को दस प्रतिशत आरक्षण दिया था। इस निर्णय के बाद जम्मू-कश्मीर में कुल आरक्षण लगभग साठ प्रतिशत तक पहुंच गया। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे चुनावी समर्थन जुटाने का प्रयास बताया था। अब यह नीति सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
सामान्य वर्ग के छात्रों ने इस नीति का जोरदार विरोध शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि आरक्षण बढ़ने से खुली प्रतिस्पर्धा के लिए नौकरियों और शिक्षा के अवसर बहुत कम हो गए हैं। जम्मू-कश्मीर की लगभग उनहत्तर प्रतिशत आबादी सामान्य वर्ग से आती है। इसलिए उनकी नाराजगी सरकार के लिए चिंता का विषय है।
चुनावी वादे और सियासी दबाव
साल 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने आरक्षण नीति की समीक्षा का वादा किया था। पार्टी ने कहा था कि वह किसी भी अन्याय या असंतुलन को दूर करेगी। अक्टूबर में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को इस मुद्दे पर भारी दबाव का सामना करना पड़ा। सरकार ने तुरंत एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया।
इस समिति ने छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। मुख्यमंत्री ने पिछले हफ्ते घोषणा की कि कैबिनेट ने रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है। अब यह रिपोर्ट उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के पास भेजी गई है। इस निर्णय ने सरकार के भीतर और बाहर दोनों जगह तनाव पैदा कर दिया है।
सड़क से सदन तक विवाद
दिसंबर महीने में श्रीनगर में मुख्यमंत्री आवास के बाहर एक बड़ा प्रदर्शन हुआ। हैरानी की बात यह रही कि इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद आगा रुहुल्लाह भी शामिल हुए। उन्होंने खुद इस आंदोलन का नेतृत्व किया। इस घटना के बाद से पार्टी नेतृत्व और रुहुल्लाह के बीच मतभेद सार्वजनिक हो गए हैं।
आगा रुहुल्लाह ने हाल ही में सामान्य वर्ग के छात्रों से मुलाकात की। उन्होंने मांग की कि आरक्षण उप-समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि बडगाम उपचुनाव से पहले यह रिपोर्ट जनता के सामने आनी चाहिए। रुहुल्लाह ने साफ कर दिया है कि वे इस चुनाव में प्रचार नहीं करेंगे।
बडगाम उपचुनाव की परीक्षा
ग्यारह नवंबर को होने वाला बडगाम विधानसभा उपचुनाव सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा माना जा रहा है। राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि आरक्षण नीति इस चुनाव का प्रमुख मुद्दा बन सकती है। सरकार के फैसले का सीधा असर इस चुनाव के नतीजों पर देखने को मिल सकता है।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने आगा रुहुल्लाह की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार दबाव में काम नहीं करती। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर प्रक्रिया के अनुसार ही कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार की कोशिश है कि इस संवेदनशील मामले में संतुलन बनाया जा सके।
वर्तमान आरक्षण व्यवस्था
जम्मू-कश्मीर में इस समय आरक्षण की व्यवस्था काफी जटिल है। अनुसूचित जाति के लिए आठ प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए दस प्रतिशत आरक्षण है। गुज्जर-बकरवाल समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त है। पिछले साल पहाड़ी समुदाय को भी दस प्रतिशत आरक्षण दिया गया।
अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आठ प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था है। नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों के निवासियों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण है। पिछड़े क्षेत्र के निवासियों के लिए दस प्रतिशत और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए दस प्रतिशत आरक्षण है।
कोर्ट में चल रही है सुनवाई
आरक्षण नीति से जुड़ी कई याचिकाएं जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में दायर की गई हैं। इन याचिकाओं पर अदालत की सुनवाई जारी है। कोर्ट के फैसले का सरकार की आरक्षण नीति पर सीधा असर पड़ेगा। सरकार की कोशिश है कि वह अदालत के फैसले का इंतजार किए बिना कोई समाधान निकाले।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आरक्षण का मुद्दा आने वाले महीनों में जम्मू-कश्मीर की राजनीति का केंद्र बिंदु बना रहेगा। यह विषय अगले चुनावों में सबसे निर्णायक भूमिका निभा सकता है। सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर अपनी रणनीति बना रहे हैं।
नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती सामान्य वर्ग और आरक्षित वर्गों के बीच संतुलन बनाने की है। सरकार का कोई भी फैसला एक वर्ग को नाराज कर सकता है। इसलिए सरकार बहुत सावधानी से इस मामले में आगे बढ़ रही है। उपराज्यपाल के फैसले का सभी की नजरों में इंतजार है।
