शनिवार, दिसम्बर 20, 2025

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट: बच्चे की कस्टडी में पिता की आर्थिक स्थिति नहीं, कल्याण है प्रमुख

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Srinagar News: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि माता को केवल आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण बच्चे की संरक्षता से वंचित नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने बताया कि संरक्षता तय करते समय बच्चे के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए।

न्यायमूर्ति जावेद इकबाल वानी ने यह फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि मां की भावनात्मक देखभाल पिता की आर्थिक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण है। यह फैसला एक मां की अपील पर आया था जिसने निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी थी।

निचली अदालत के फैसले को खारिज

श्रीनगर की निचली अदालत ने संरक्षता पिता को देने का आदेश दिया था। निचली अदालत ने मां के पूर्व आश्वासन का हवाला दिया था। साथ ही पिता की बेहतर आर्थिक स्थिति को भी आधार बनाया था। पिता कतर में रहते थे और बेहतर सुविधाएं दे सकते थे।

उच्च न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि संरक्षता का फैसला केवल आर्थिक क्षमता पर आधारित नहीं हो सकता। न्यायालय ने बच्चे के भावनात्मक और नैतिक विकास को अधिक महत्व दिया। इससे बच्चे के समग्र कल्याण पर ध्यान केंद्रित किया गया।

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मां की भूमिका को मान्यता

अदालत ने मां की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। न्यायमूर्ति वानी ने कहा कि मां की सीमित आय उसे बच्चे की देखभाल के लिए अयोग्य नहीं बनाती। कल्याण की परिभाषा केवल शारीरिक जरूरतों तक सीमित नहीं है। इसमें नैतिक और भावनात्मक विकास भी शामिल है।

न्यायालय ने कहा कि मां का आचरण ही संरक्षता छीनने का आधार हो सकता है। जब तक मां का व्यवहार बच्चे के कल्याण को प्रभावित नहीं करता, तब तक संरक्षता बनी रहनी चाहिए। इससे मातृत्व के अधिकारों को मजबूती मिली है।

घरेलू हिंसा का मामला

अदालत ने एक महत्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान दिलाया। मां बच्चों को लेकर कतर से भारत इसलिए लौटी थी क्योंकि वहां की अदालत ने पिता को घरेलू हिंसा के मामले में दोषी ठहराया था। इससे मां के कदम की वैधता स्थापित हुई।

न्यायालय ने इसे बच्चों की सुरक्षा के लिए उठाया गया जरूरी कदम माना। इस तथ्य ने मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इससे पिता की दलीलों को कमजोर करने में मदद मिली। अदालत ने मां की सुरक्षा चिंताओं को गंभीरता से लिया।

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बच्चों की राय और वर्तमान स्थिति

अदालत ने सात वर्षीय बेटे से बातचीत का भी जिक्र किया। बच्चे से पूछा गया कि यदि वह कतर जाए और मां साथ न हो तो उसकी देखभाल कौन करेगा। बच्चे ने झिझकते हुए जवाब दिया कि शायद एक नौकरानी।

न्यायमूर्ति वानी ने कहा कि इस झिझक से बच्चे का मां के प्रति लगाव स्पष्ट झलकता है। बच्चे दो हज़ार बाईस से कश्मीर में मां के साथ रह रहे हैं। वे स्थिर वातावरण में पढ़ाई कर रहे हैं। उन्हें वहां से हटाना उनकी दिनचर्या को बाधित करेगा।

मुस्लिम व्यक्तिगत कानून पर दृष्टिकोण

पिता ने मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत दलील दी थी। उन्होंने कहा कि हिजानत के अनुसार बेटे की संरक्षता मां को केवल दो वर्ष तक ही मिल सकती है। उच्च न्यायालय ने इस दलील को खारिज कर दिया।

अदालत ने कहा कि मां का अधिकार तब तक कायम रहता है जब तक कोई वैधानिक अयोग्यता सिद्ध न हो। न्यायालय ने संवैधानिक लिंग समानता के सिद्धांत का हवाला दिया। पुरुष होने के आधार पर पिता को वरीयता नहीं दी जा सकती।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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