Himachal News: अंतरराष्ट्रीय श्रीरेणुकाजी मेले के दूसरे दिन हजारों श्रद्धालुओं ने पवित्र रेणुकाजी झील में एकादशी पर शाही स्नान किया। सुबह करीब चार बजे शाही स्नान शुरू हुआ और दिन भर श्रद्धालु स्नान करते रहे। न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि अन्य राज्यों से भी भारी संख्या में लोग इस धार्मिक उत्सव में शामिल हुए।
श्रद्धालुओं ने माता रेणुका और भगवान परशुराम के मंदिरों में दर्शन किए। उन्होंने पूरे परिवार के साथ मंदिर में माथा टेका। कई श्रद्धालु पीढ़ियों से इस परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस तीर्थ स्थल पर मन्नतें पूरी होती हैं।
एकादशी स्नान का धार्मिक महत्व
एकादशी के दिन रेणुका झील में स्नान को अत्यंत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति पापों से मुक्त हो जाता है। श्रद्धालु इस दिन के लिए विशेष तैयारियों के साथ आते हैं। वे पवित्र जल में डुबकी लगाकर आध्यात्मिक शुद्धता प्राप्त करते हैं।
पारिवारिक परंपरा का निर्वाह
कई श्रद्धालु ऐसे हैं जो पीढ़ियों से इस परंपरा को निभा रहे हैं। उनके पूर्वज भी इसी तीर्थ स्थल पर आकर स्नान करते थे। यह परंपरा उनके लिए पारिवारिक विरासत का हिस्सा बन गई है। नई पीढ़ी भी इस धार्मिक अनुष्ठान को जारी रखे हुए है।
मेले में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब
मेले के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई। सुबह से ही लोग झील के किनारे जमा होने लगे। स्नान के बाद श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे। पूरा परिसर भक्ति की भावना में डूबा रहा। लोगों के चेहरे पर आस्था और श्रद्धा साफ दिख रही थी।
धार्मिक आयोजनों की तैयारियां
मेला प्रबंधन समिति ने श्रद्धालुओं के लिए व्यापक प्रबंध किए थे। सुरक्षा और स्वच्छता के विशेष इंतजाम किए गए थे। धार्मिक अनुष्ठानों को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए पुजारियों की टीम मौजूद थी। प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन के लिए पर्याप्त व्यवस्था की थी।
श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास
श्रद्धालु माता रेणुका और भगवान परशुराम में गहरी आस्था रखते हैं। वे मानते हैं कि इस पवित्र स्थल पर आकर मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कई लोग दूर-दूर से चलकर पैदल ही यहां पहुंचते हैं। उनकी श्रद्धा और भक्ति देखने लायक होती है।
सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
यह मेला हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। स्थानीय लोग इस परंपरा को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। युवा पीढ़ी भी इन धार्मिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग ले रही है। इससे सांस्कृतिक निरंतरता बनी हुई है।
तीर्थ यात्रा का सामाजिक पहलू
यह मेला लोगों के मिलने-जुलने का भी अवसर प्रदान करता है। रिश्तेदार और परिचित इस अवसर पर एक-दूसरे से मिलते हैं। सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में ऐसे आयोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लोग धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ सामाजिक संपर्क भी बनाए रखते हैं।
