शनिवार, दिसम्बर 20, 2025

भारत की आजादी: ये दो जिले 15 अगस्त नहीं, 18 अगस्त को मनाते हैं स्वतंत्रता दिवस, जानें वजह

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West Bengal News: भारत हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में जश्न मनाता है। यह वह दिन है जब 1947 में देश को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश के दो जिले ऐसे भी हैं जहां 15 अगस्त नहीं, बल्कि 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है? ये जिले हैं पश्चिम बंगाल का नादिया और मालदा। आखिर क्यों यहां 18 अगस्त को आजादी का जश्न मनाया जाता है, आइए जानते हैं।

नादिया और मालदा को क्यों मिली देरी से आजादी?

15 अगस्त 1947 को जब पूरा भारत आजाद हो गया, तब नादिया और मालदा पाकिस्तान का हिस्सा बन गए थे। बंटवारे के दौरान बनाए गए नक्शे के मुताबिक, ये दोनों जिले पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में शामिल थे। लेकिन यहां के लोग भारत में रहना चाहते थे। उन्होंने इस फैसले का विरोध किया और भारत में शामिल होने की मांग की।

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कैसे बदला नक्शा?

नादिया और मालदा के लोगों के विरोध के बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने बंटवारे के नक्शे में बदलाव किया। 17 अगस्त 1947 की रात को नए नक्शे को मंजूरी मिली और 18 अगस्त को इन जिलों को आधिकारिक तौर पर भारत में शामिल कर लिया गया। इसीलिए यहां के लोग 18 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।

क्या कहता है इतिहास?

उस समय नादिया के शाही परिवार और पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं ने भारत सरकार पर दबाव बनाया था। उनकी मांग थी कि नादिया और मालदा को भारत में शामिल किया जाए। आखिरकार, ब्रिटिश सरकार ने उनकी बात मान ली और नक्शे में बदलाव किया।

कैसे मनाया जाता है यहां स्वतंत्रता दिवस?

नादिया और मालदा में 18 अगस्त को स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी दफ्तरों में तिरंगा फहराया जाता है। देशभक्ति के गीत गाए जाते हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां के लोग इस दिन को बड़े ही गर्व के साथ मनाते हैं।

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स्वतंत्रता दिवस का महत्व

स्वतंत्रता दिवस सिर्फ एक जश्न नहीं, बल्कि उन वीरों को याद करने का दिन है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। यह दिन हमें एकता, अखंडता और राष्ट्रप्रेम की भावना को मजबूत करने की प्रेरणा देता है। हर साल 15 अगस्त को दिल्ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं।

नादिया और मालदा की कहानी हमें याद दिलाती है कि आजादी की लड़ाई सिर्फ एक दिन की नहीं, बल्कि कई संघर्षों और बलिदानों की दास्तान है।

Poonam Sharma
Poonam Sharma
एलएलबी और स्नातक जर्नलिज्म, पत्रकारिता में 11 साल का अनुभव।

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