World News: भारत वर्तमान में एक ऐसी भू-राजनीतिक स्थिति में है जिसे लैग्रेंज बिंदु की संज्ञा दी जा रही है। यह अंतरिक्ष में वह स्थान है जहां दो बड़े पिंडों के गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होते हैं। भारत अमेरिका और चीन इन दो महाशक्तियों के बीच ऐसे ही संतुलन को बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। इस संतुलन को बनाए रखना भारत की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
लैग्रेंज बिंदु की अवधारणा
लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में स्थित वे पांच विशेष स्थान हैं जहां दो बड़े पिंडों का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित हो जाता है। यह संतुलन एक छोटे पिंड को बिना अधिक ऊर्जा खर्च किए वहां स्थिर रहने की अनुमति देता है। भारत की वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय स्थिति को समझाने के लिए यह रूपक काफी प्रासंगिक है। भारत को अमेरिका और चीन के बीच ऐसे ही संतुलन को बनाए रखना है।
अमेरिका के साथ संबंधों की चुनौती
अमेरिका के साथ भारत के संबंधों में हाल के दिनों में कुछ तनाव देखने को मिला है। अमेरिकी प्रशासन का दृष्टिकोण भारत के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। भारत ने हमेशा से ही अपनी स्वतंत्र विदेश नीति पर जोर दिया है। वह किसी भी देश का कनिष्ठ भागीदार बनने को तैयार नहीं है। भारत की यह स्थिति उसके दीर्घकालिक हितों के अनुरूप है।
चीन के साथ जटिल संबंध
चीन के साथ भारत के संबंध हमेशा से ही जटिल रहे हैं। दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। हाल के महीनों में दोनों देशों के बीच संबंधों में कुछ सुधार देखने को मिला है। यह सुधार महीनों की शांत कूटनीति का परिणाम है। भारत का उद्देश्य चीन के साथ तनाव कम करना है न कि उसे और बढ़ाना।
बहुध्रुवीय विश्व की अवधारणा
भारत लंबे समय से बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करता आया है। इस अवधारणा के अनुसार विश्व में किसी एक शक्ति का वर्चस्व नहीं होना चाहिए। भारत ने हमेशा से ही कई देशों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे हैं। यही कारण है कि भारत एक ओर क्वाड जैसे समूह का सदस्य है तो दूसरी ओर चीन के साथ संबंध सुधारने की कोशिश कर रहा है।
सामरिक स्वायत्तता का महत्व
भारत की विदेश नीति का केंद्रीय सिद्धांत सामरिक स्वायत्तता रहा है। इसका अर्थ है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा स्वयं करेगा। वह किसी भी देश के प्रभाव में आए बिना अपने निर्णय लेगा। यह सिद्धांत भारत को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में स्वतंत्र रूप से कार्य करने की स्वतंत्रता देता है। इसी सिद्धांत के कारण भारत विभिन्न देशों के साथ संबंध बनाए रखता है।
अमेरिका के साथ साझेदारी का महत्व
अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। दोनों देशों के बीच रक्षा, शिक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग चल रहा है। यह साझेदारी दोनों देशों के लिए फायदेमंद साबित हुई है। भारत इस साझेदारी को और मजबूत बनाना चाहता है।
भविष्य की राह
भारत के लिए भविष्य की राह स्पष्ट है। उसे अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। अमेरिका और चीन के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना होगा। किसी एक देश के प्रभाव में आए बिना स्वतंत्र निर्णय लेने होंगे। यह मार्ग चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन भारत के हितों के लिए सर्वोत्तम है।
