New Delhi News: देश की करेंसी भारतीय रुपया एशिया में सबसे कमजोर साबित हुई है। साल 2025 में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले इसमें 4.3% की बड़ी गिरावट आई है। एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि हालात नहीं सुधरे तो यह 90 के स्तर को छू सकता है। भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में देरी को इसकी मुख्य वजह माना जा रहा है।
समझौते में देरी से बढ़ा संकट
विदेशी मुद्रा विश्लेषकों ने बाजार को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता जल्द नहीं होता है, तो गिरावट और बढ़ेगी। ऐसे में एक डॉलर की कीमत 90 रुपये तक पहुंच सकती है। चॉइस वेल्थ के अनुसार, रुपया चीनी युआन और इंडोनेशियाई करेंसी के मुकाबले ज्यादा कमजोर हुआ है। हालांकि, जापानी येन की तुलना में इसकी स्थिति थोड़ी बेहतर है।
घरेलू नहीं, वैश्विक कारणों से दबाव
एक्सिस बैंक के एक्सपर्ट तनय दलाल ने इस गिरावट का विश्लेषण किया है। उनके मुताबिक, रुपये पर दबाव घरेलू कारणों से नहीं है। इसका मुख्य कारण विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी की निकासी (Capital Outflows) है। साल 2025 में भारतीय रुपया 4% टूटा है। इसकी तुलना में इंडोनेशियाई रुपियाह में 2.9% और फिलीपींस पेसो में केवल 1.3% की गिरावट आई है। दूसरी तरफ, चीनी युआन की वजह से अन्य एशियाई मुद्राओं में मजबूती दिखी है।
21 नवंबर को रिकॉर्ड गिरावट
बीते दिनों रुपये ने गिरावट का नया रिकॉर्ड बनाया था। 21 नवंबर को यह 88.8 के स्तर को तोड़कर 89.66 तक लुढ़क गया। हालांकि, बाद में इसमें थोड़ी रिकवरी आई और यह 89.22 पर पहुंच गया। पिछले दो महीनों में डॉलर इंडेक्स में 3.6% की तेजी आई है। इसका सीधा असर विकासशील देशों की करेंसी पर पड़ा है। अमेरिका द्वारा बढ़ाए गए टैरिफ और कीमती धातुओं की बढ़ती कीमतों ने भारत के व्यापार घाटे को प्रभावित किया है।
2026 में सुधार की उम्मीद
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी निवेशकों (FII) की लगातार बिकवाली ने भारतीय रुपया को कमजोर किया है। डॉ. विजयकुमार के अनुसार, अगर व्यापार समझौता होता है और टैरिफ घटते हैं, तो करेंसी में सुधार दिखेगा। अनुमान है कि रुपया पहले 90 के स्तर तक गिरेगा। इसके बाद साल 2026 की शुरुआत में यह रिकवर होकर 88.50 के आसपास आ सकता है।
