India News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारतीय संस्कृति को अपनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि दुनिया भौतिकवाद के कारण समस्याओं से जूझ रही है। भागवत ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में कहा कि भारत का स्वभाव समाधान दे सकता है। पश्चिमी विचार पिछले 2,000 वर्षों में असफल रहे। भारत को विश्व को शांति और समृद्धि का रास्ता दिखाना होगा। यह दायित्व हमारा है।
भौतिकवाद से बढ़ीं समस्याएं
मोहन भागवत ने कहा कि विज्ञान और आर्थिक प्रगति ने जीवन को आसान बनाया, लेकिन दुखों का अंत नहीं हुआ। शोषण और गरीबी बढ़ी है। अमीर-गरीब की खाई चौड़ी हो रही है। उन्होंने कहा कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद राष्ट्र संघ बना, फिर भी द्वितीय विश्व युद्ध हुआ। संयुक्त राष्ट्र के बावजूद तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बनी है। भारतीय संस्कृति ही इन समस्याओं का समाधान दे सकती है।
भारतीयता का स्वभाव
भागवत ने बताया कि भारतीयता नागरिकता से परे है। यह जीवन के समग्र दृष्टिकोण को दर्शाती है। हिंदू दर्शन के चार पुरुषार्थों में मोक्ष अंतिम लक्ष्य है। यह दर्शन भारत को समृद्ध बनाता था। दुनिया इसे जानती है और भारत से उम्मीद करती है। भागवत ने कहा कि हमें अपने राष्ट्र को तैयार करना होगा। यह कार्य स्वयं और परिवार से शुरू होता है। भारतीय संस्कृति विश्व को रास्ता दिखाएगी।
पश्चिमी इतिहास पर सवाल
मोहन भागवत ने कहा कि पश्चिमी इतिहास भारत को नजरअंदाज करता है। उनके पाठ्यक्रम में चीन और जापान का जिक्र है, लेकिन भारत का नहीं। उन्होंने बताया कि भारत के पाठ्यक्रम में बदलाव हो रहे हैं। भागवत ने लोगों से परिवर्तन के लिए तैयार रहने को कहा। भारतीय संस्कृति को अपनाकर हम विश्व को समस्याओं का समाधान दे सकते हैं। यह भारत का वैश्विक दायित्व है।
विश्व शांति के लिए भारत की भूमिका
आरएसएस प्रमुख ने जोर दिया कि भारत का स्वभाव विश्व को एकजुट करता है। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी संस्कृति के आधार पर विश्व को नया रास्ता दिखाना होगा। भागवत ने बताया कि भारत का धर्म और संस्कृति शांति और समृद्धि का आधार है। हमें अपने परिवार और समाज से शुरुआत करनी होगी। दुनिया भारत से उम्मीद करती है कि वह समस्याओं का समाधान देगा।
