शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

भारत ने ताजिकिस्तान के आयनी एयरबेस से हटाई अपनी सैन्य मौजूदगी, रूस-चीन के दबाव की चर्चा

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International News: भारत ने ताजिकिस्तान स्थित रणनीतिक आयनी एयरबेस से अपनी सैन्य उपस्थिति समाप्त कर दी है। यह एयरबेस भारत के लिए मध्य एशिया में एक महत्वपूर्ण सैन्य ठिकाना था। रिपोर्ट्स के अनुसार रूस और चीन के दबाव के कारण ताजिकिस्तान ने एयरबेस की लीज आगे नहीं बढ़ाई। इसके साथ ही भारत का दक्षिण एशिया से बाहर पहला सैन्य ठिकाना समाप्त हो गया है। भारत ने इस एयरबेस के विकास में करोड़ों रुपये का निवेश किया था।

आयनी एयरबेस ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से मात्र 10 किलोमीटर दूर स्थित है। भारत ने साल 2002 में इस एयरबेस को आधुनिक बनाने का काम शुरू किया था। भारत ने एयरबेस के रनवे को 3,200 मीटर तक लंबा किया और नए हैंगर बनवाए। इस परियोजना पर लगभग 70-80 मिलियन डॉलर का खर्च आया था।

एयरबेस का रणनीतिक महत्व

आयनी एयरबेस का भारत के लिए विशेष सैन्य महत्व था। यह एयरबेस अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर के नजदीक स्थित है। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से इसकी दूरी मात्र 20 किलोमीटर है। इस स्थान से भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान पाकिस्तान के अहम शहरों तक पहुंच सकते थे।

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एयरबेस ने भारत को पाकिस्तान के वायुक्षेत्र को बायपास करने की क्षमता प्रदान की थी। इससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया में भारतीय संचालन आसान हो गया था। साल 2001 में भारत ने इसी एयरबेस से अफगानिस्तान में फंसे अपने नागरिकों को निकाला था।

रूस और चीन का बढ़ता दबाव

ताजिकिस्तान रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संगठन का सदस्य है। रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस और चीन ने मिलकर ताजिकिस्तान पर दबाव बनाया। इस दबाव के कारण ताजिकिस्तान ने एयरबेस की लीज नवीनीकृत नहीं की। साल 2021 में ताजिकिस्तान ने भारत को आधिकारिक सूचना दे दी थी।

ताजिकिस्तान ने लीज न बढ़ाने का कारण ‘गैर-क्षेत्रीय सैन्य कर्मियों’ की मौजूदगी बताया। भारत ने साल 2022 में एयरबेस से अपने सैन्य उपकरण और कर्मियों को वापस बुलाना शुरू कर दिया। इस प्रक्रिया के साथ ही भारत की दो दशक की सैन्य उपस्थिति समाप्त हो गई।

भारत की सैन्य उपस्थिति का इतिहास

भारत ने आयनी एयरबेस पर कई सैन्य संसाधन तैनात किए थे। भारत ने ताजिकिस्तान को दो Mi-17 हेलीकॉप्टर उपहार में दिए थे। इन हेलीकॉप्टरों को भारतीय वायुसेना के पायलट संचालित करते थे। भारत ने कुछ समय के लिए सुखोई लड़ाकू विमान भी यहां तैनात किए थे।

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विश्लेषकों का मानना है कि रूस को भारत के पश्चिमी देशों के साथ बढ़ते संबंधों से चिंता थी। रूस नहीं चाहता था कि मध्य एशिया में पश्चिमी देशों का प्रभाव बढ़े। इसी कारण रूस ने ताजिकिस्तान पर दबाव बनाकर भारत को एयरबेस छोड़ने के लिए मजबूर किया।

क्षेत्रीय भू-राजनीतिक प्रभाव

ताजिकिस्तान की भौगोलिक स्थिति बेहद महत्वपूर्ण है। यह देश अफगानिस्तान, चीन और किर्गिस्तान की सीमाओं से लगा हुआ है। इस क्षेत्र में रूस, चीन और भारत की परस्पर प्रतिस्पर्धा रही है। भारत की वापसी से मध्य एशिया में रूस और चीन का प्रभाव और मजबूत हुआ है।

ताजिकिस्तान में रूस का सबसे बड़ा विदेशी सैन्य अड्डा स्थित है। चीन भी इस क्षेत्र में अपने सुरक्षा निवेश को बढ़ा रहा है। भारत की एयरबेस से वापसी मध्य एशिया में बदलते शक्ति संतुलन को दर्शाती है। यह क्षेत्र विभिन्न वैश्विक शक्तियों के लिए रणनीतिक महत्व रखता है।

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