India News: भारत के रूसी तेल आयात में दिसंबर 2025 में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। यह गिरावट अमेरिका और यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंधों के कारण आई है। अनुमान है कि दिसंबर में आयात घटकर 6 से 6.5 लाख बैरल प्रतिदिन रह जाएगा। यह नवंबर के अनुमानित 18.7 लाख बैरल प्रतिदिन की तुलना में लगभग 70 प्रतिशत की भारी गिरावट को दर्शाता है।
प्रतिबंधों ने बदला व्यापार का समीकरण
अमेरिकाने नवंबर में रूस की प्रमुख तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लुकोइल पर नए सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों के बाद इन कंपनियों के साथ किसी भी लेनदेन को उच्च जोखिम वाला माना जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बैंक अब रूसी तेल की खरीद के लिए होने वाले भुगतानों की कड़ाई से जांच कर रहे हैं। इस कारण भुगतान प्रक्रिया में लंबी देरी हो रही है, जिससे भारतीय रिफाइनरियों के लिए रूसी तेल खरीदना मुश्किल हो गया है।
यूरोपीय संघ के नियमों का असर
यूरोपीय संघ कानया नियम भारत के तेल व्यापार को प्रभावित कर रहा है। यूरोपीय संघ ने तय किया है कि वह 21 जनवरी के बाद उन रिफाइनरियों से ईंधन नहीं खरीदेगा जिन्होंने पिछले 60 दिनों में रूसी कच्चा तेल इस्तेमाल किया हो। इस नियम का भारत की बड़ी निर्यातोन्मुखी रिफाइनरियों पर सीधा असर पड़ा है। इन रिफाइनरियों को अब अपने निर्यात बाजार को ध्यान में रखते हुए रणनीति बदलनी पड़ रही है।
भारतीय कंपनियों की नई रणनीति
कई प्रमुख सरकारीतेल कंपनियों ने रूसी तेल खरीदना लगभग बंद कर दिया है। एमआरपीएल, एचपीसीएल और मित्तल एनर्जी जैसी कंपनियां अब रूसी तेल से दूरी बना रही हैं। आईओसी और बीपीसीएल ने स्पष्ट किया है कि वे केवल उन्हीं आपूर्तिकर्ताओं से तेल लेंगे जिन पर कोई प्रतिबंध नहीं है। वहीं नायरा एनर्जी, जिसमें रूस की रोसनेफ्ट की हिस्सेदारी है, मजबूरी में अभी भी रूसी तेल पर निर्भर है।
अमेरिकी तेल की ओर बढ़ रहा रुख
भू-राजनीतिक दबाव केबीच भारत के तेल आयात के स्रोतों में बदलाव देखा जा रहा है। अक्टूबर में भारत के तेल आयात में अमेरिकी तेल की हिस्सेदारी जून 2024 के बाद सबसे अधिक रही। कीमतों के अंतर ने अमेरिकी तेल को भारत के लिए आकर्षक बना दिया है। अमेरिका ने भारत पर आयात शुल्क बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है, जिससे व्यापारिक रिश्तों पर असर पड़ रहा है।
भविष्य की दिशा
विशेषज्ञोंका मानना है कि भारत रूस से तेल की खरीद पूरी तरह बंद नहीं करेगा। हालांकि आने वाले महीनों में रूसी तेल आयात में significant कमी जारी रहने की उम्मीद है। भारतीय कंपनियां भुगतान जोखिम, प्रतिबंधों और यूरोपीय बाजार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक संतुलित रणनीति अपना रही हैं। इस नई स्थिति में भारत को अमेरिका, मध्य-पूर्व और अफ्रीका जैसे अन्य स्रोतों से तेल आयात बढ़ाने पर विचार करना पड़ सकता है।
