India News: तलाक के बाद गुजारा भत्ता या अलिमोनी एक महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता होती है। भारतीय कानून विभिन्न प्रकार के अलिमोनी का प्रावधान करता है, जो व्यक्ति की स्थिति और धर्म के आधार पर अलग-अलग होते हैं।
अलिमोनी के प्रमुख प्रकार
भारतीय कानून में तलाक के बाद छह प्रकार के गुजारा भत्ते का प्रावधान है। स्थायी गुजारा भत्ता तब तक मिलता रहता है जब तक प्राप्तकर्ता की मृत्यु या पुनर्विवाह न हो जाए। अंतरिम गुजारा भत्ता तलाक की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने तक दिया जाता है। पुनर्वास गुजारा भत्ता सीमित अवधि के लिए होता है ताकि व्यक्ति आत्मनिर्भर बन सके।
धर्म के अनुसार अलिमोनी के नियम
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 और 25 स्थायी और अंतरिम अलिमोनी का प्रावधान करती है। मुस्लिम कानून में इद्दत अवधि तक भरण-पोषण दिया जाता है। ईसाई और पारसी समुदाय के लिए भी विशेष कानून हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत अंतरधर्मीय विवाहों में भी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है।
कोर्ट किन बातों को ध्यान में रखती है?
अलिमोनी तय करते समय न्यायालय दोनों पक्षों की आय, भविष्य की कमाई की क्षमता और बच्चों की विशेष आवश्यकताओं पर विचार करता है। झारखंड हाई कोर्ट ने एक मामले में पत्नी को 90,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता दिया था, जिसमें ऑटिस्टिक बच्चे की देखभाल का खर्च भी शामिल था।
वित्तीय तैयारी क्यों जरूरी है?
तलाक के बाद वित्तीय सुरक्षा के लिए अलग बैंक खाता खोलना, बीमा पॉलिसी अपडेट करना और संयुक्त ऋणों से नाम हटाना महत्वपूर्ण है। एकमुश्त अलिमोनी पर कोई टैक्स नहीं लगता, जबकि मासिक भत्ता कर योग्य हो सकता है। बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी खर्च अलग से तय किए जाते हैं।
कानूनी और वित्तीय सलाह की आवश्यकता
तलाक की प्रक्रिया में अनुभवी वकील के साथ-साथ वित्तीय सलाहकार की भी जरूरत पड़ सकती है। उचित योजना से व्यक्ति अपने भविष्य को सुरक्षित कर सकता है और नए सिरे से जीवन शुरू कर सकता है।
