New Delhi News: भारत को दुनिया की उभरती हुई महाशक्ति कहा जा रहा है। भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian Economy) तेजी से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसकी नींव में कर्ज की एक दिलचस्प कहानी भी है। आंकड़े बताते हैं कि मार्च 2020 तक भारत का कुल विदेशी कर्ज 558.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया था। सवाल यह है कि इतना कर्ज लेने वाला देश दूसरों की मदद कैसे कर रहा है? क्या भारत दुनिया का बड़ा कर्जदार है या एक जिम्मेदार मैनेजर?
कहाँ से आया इतना विदेशी कर्ज?
भारत का विदेशी कर्ज किसी एक देश तक सीमित नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों और विदेशी बैंकों से पैसा जुटाया गया है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा कमर्शियल बॉरोइंग (Commercial Borrowing) और एनआरआई डिपॉजिट्स का है। इसके अलावा, वर्ल्ड बैंक (World Bank) और एशियाई विकास बैंक (ADB) जैसी संस्थाएं भारत की प्रमुख ऋणदाता रही हैं। इस पैसे का इस्तेमाल देश में इंफ्रास्ट्रक्चर और उद्योगों को खड़ा करने में किया गया है।
मुश्किल वक्त का सहारा बना कर्ज
कोरोना महामारी जैसे संकट के समय विदेशी कर्ज ने बड़ी भूमिका निभाई। बहुपक्षीय संस्थाओं से मिले पैसे का उपयोग एमएसएमई (MSME) सेक्टर को बचाने में किया गया। साथ ही, देश की स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने में भी यह फंड काम आया। यह कर्ज संकट प्रबंधन का एक अहम हथियार साबित हुआ है।
एनआरआई और कंपनियों का बड़ा रोल
विदेशों में रहने वाले भारतीयों (NRIs) का पैसा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत पिलर है। एनआरआई डिपॉजिट्स देश को सुरक्षित फंडिंग देते हैं। वहीं, भारतीय कंपनियां विदेश से सस्ती दरों पर कर्ज लेती हैं। इससे वे अपना उत्पादन बढ़ाती हैं और देश में रोजगार के नए मौके पैदा करती हैं। हालांकि, इसमें करेंसी रेट बदलने का थोड़ा जोखिम जरूर रहता है।
कर्जदार होकर भी ‘मददगार’ है भारत
हैरानी की बात यह है कि कर्ज लेने के बावजूद भारत सिर्फ हाथ फैलाने वाला देश नहीं है। भारत आज दुनिया के 65 से ज्यादा देशों को आर्थिक मदद दे रहा है। यह मदद लाइन ऑफ क्रेडिट, अनुदान और तकनीकी सहयोग के रूप में दी जाती है। खास तौर पर अफ्रीकी देशों और पड़ोसियों के साथ भारत ने विकास साझेदारी बढ़ाई है। इससे दुनिया में भारत की साख एक जिम्मेदार साथी के रूप में मजबूत हुई है।
क्या यह कर्ज खतरे की घंटी है?
आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो विदेशी कर्ज तब तक खतरा नहीं है, जब तक उसे चुकाने की क्षमता हो। जीडीपी के अनुपात में भारत का कर्ज अभी भी कंट्रोल में है। देश का मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय अर्थव्यवस्था को झटकों से बचाता है। असल चुनौती बस यह सुनिश्चित करना है कि उधार लिया गया पैसा सही विकास कार्यों और रोजगार बढ़ाने में ही खर्च हो।
