National News: भारत और फ्रांस ने रक्षा अनुसंधान और विकास सहयोग को नई दिशा दी है। DRDO और फ्रांस के आयुध महानिदेशालय के बीच गुरुवार को नए तकनीकी समझौते पर हस्ताक्षर हुए। यह समझौता दिल्ली स्थित DRDO भवन में संपन्न हुआ।
डॉ. समीर वी. कामत और लेफ्टिनेंट जनरल गेल डियाज डी तुएस्टा ने इस महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस रणनीतिक साझेदारी का उद्देश्य भविष्य की रक्षा चुनौतियों के लिए अभिनव समाधान विकसित करना है। दोनों देशों की संयुक्त विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाएगा।
सहयोग के प्रमुख क्षेत्र
इस समझौते के तहत कई उन्नत प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में सहयोग किया जाएगा। एयरोनॉटिकल प्लेटफॉर्म और मानवरहित प्रणालियां प्रमुख फोकस क्षेत्र होंगे। उन्नत रक्षा सामग्री और साइबर सुरक्षा में संयुक्त अनुसंधान किया जाएगा।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी भी सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। नेविगेशन, प्रोपल्शन और सेंसर तकनीक में भी संयुक्त प्रयास होंगे। क्वांटम तकनीक और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियां भी सहयोग का हिस्सा बनेंगी।
संयुक्त अनुसंधान और प्रशिक्षण
यह समझौता संयुक्त अनुसंधान और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए औपचारिक रूपरेखा प्रदान करता है। दोनों देश परीक्षण गतिविधियों और तकनीकी आदान-प्रदान में सहयोग करेंगे। कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन भी किया जाएगा।
इससे DRDO में कौशल और ज्ञान को बढ़ावा मिलेगा। दोनों पक्षों के विशेषज्ञ एक-दूसरे के अनुभवों से लाभान्वित होंगे। प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संयुक्त विकास परियोजनाओं को बढ़ावा मिलेगा।
तकनीकी हस्तांतरण और सूचना साझाकरण
समझौते के तहत दोनों देशों को उपकरणों और तकनीकी जानकारी के हस्तांतरण की सुविधा मिलेगी। प्रौद्योगिकियों के आदान-प्रदान से दोनों देशों की रक्षा क्षमताओं में वृद्धि होगी। जल के भीतर प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ेगा।
यह साझेदारी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी प्रगति में भी इसका योगदान रहेगा। दोनों पक्षों ने इस सहयोग को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बताया है।
भारत-फ्रांस रक्षा संबंध
भारत और फ्रांस के बीच रक्षा सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। यह नया समझौता द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को और मजबूत करेगा। दोनों देश पहले से ही कई संयुक्त रक्षा परियोजनाओं में सहयोग कर रहे हैं।
राफेल विमानों की आपूर्ति इस सहयोग का एक उदाहरण है। नौसेना और वायुसेना के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी में भी सहयोग जारी है। यह नया समझौता इस साझेदारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा।
वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी में योगदान
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सहयोग वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। दोनों देशों की तकनीकी क्षमताओं का समन्वय नई खोजों को जन्म दे सकता है। यह साझेदारी क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा को भी प्रभावित करेगी।
रक्षा अनुसंधान में आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है। भारत की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को भी इससे बल मिलेगा। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के जरिए तकनीकी क्षमताओं का विकास जारी रहेगा।
