Lifestyle News: आज साड़ी के साथ ब्लाउज पहनना भारतीय महिलाओं की पारंपरिक पोशाक का अहम हिस्सा बन चुका है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह ब्लाउज हमेशा से हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं था? आइए जानते हैं ब्लाउज के भारतीय फैशन में शामिल होने की दिलचस्प कहानी।
प्राचीन भारत में साड़ी और ब्लाउज
सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही साड़ी भारतीय महिलाओं का प्रमुख परिधान रही है। प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों में महिलाएं बिना ब्लाउज के साड़ी पहने दिखाई देती हैं। अंग्रेजों के आने तक भी ब्लाउज भारतीय महिलाओं के पहनावे का हिस्सा नहीं था।
ब्लाउज से पहले क्या पहनती थीं महिलाएं?
ब्लाउज के अभाव में महिलाएं दो प्रकार के वस्त्रों का उपयोग करती थीं:
- अंतरिया: निचले हिस्से को ढकने के लिए
- उत्तरीय: ऊपरी हिस्से को ढकने के लिए
इसके अलावा स्तन पत्ता का भी उपयोग किया जाता था। ये सभी वस्त्र बिना सिले हुए होते थे।
ब्लाउज कैसे बना साड़ी का हिस्सा?
19वीं शताब्दी में ज्ञानदानंदिनी देवी (रबींद्रनाथ टैगोर की भाभी) ने ब्लाउज को भारतीय पहनावे में शामिल किया। एक दिलचस्प घटना के बाद जब उन्हें बिना ब्लाउज के क्लब में प्रवेश नहीं दिया गया, तो उन्होंने साड़ी के साथ ब्लाउज और पेटीकोट पहनना शुरू किया। यह ब्रिटिश फैशन से प्रेरित था।
धीरे-धीरे बना परंपरा का हिस्सा
ज्ञानदानंदिनी देवी ने न केवल ब्लाउज को अपनाया, बल्कि साड़ी पहनने के नए तरीके भी सिखाए। उन्होंने कई महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग भी दी। धीरे-धीरे यह पूरे भारत में फैल गया और आज ब्लाउज के बिना साड़ी की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
आधुनिक समय में ब्लाउज
आज ब्लाउज साड़ी का अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। समय के साथ ब्लाउज के डिजाइनों में भी काफी बदलाव आया है। पारंपरिक कट से लेकर आधुनिक डिजाइन तक, ब्लाउज ने भारतीय फैशन में अपनी विशेष पहचान बना ली है।
