शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

हिंदू-कुश हिमालय: 2 डिग्री तापमान बढ़ने पर 75 प्रतिशत बर्फ हो जाएगी खत्म, नई रिपोर्ट में चेतावनी

Share

Environment News: दुनिया की छत कहलाने वाला हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र गंभीर खतरे में है। एक नई वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में मामूली वृद्धि भी यहां की बर्फ को पिघला सकती है। यदि वैश्विक तापमान औद्योगिक स्तर से दो डिग्री बढ़ा तो क्षेत्र की सिर्फ पच्चीस प्रतिशत बर्फ ही बचेगी। यह खुलासा अंतरराष्ट्रीय क्रायोस्फीयर जलवायु पहल की ताजा रिपोर्ट में हुआ है।

इस रिपोर्ट को ‘स्टेट ऑफ द क्रायोस्फीयर 2025’ नाम दिया गया है। इसे ब्राजील में होने वाले सीओपी30 जलवायु शिखर सम्मेलन से ठीक पहले जारी किया गया। रिपोर्ट में एशिया के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों के ग्लेशियरों पर गहन शोध शामिल है। निष्कर्ष बेहद चिंताजनक और भविष्य के लिए खतरे की घंटी हैं।

तीसरा ध्रुव कहलाता है हिंदू-कुश हिमालय

वैज्ञानिक हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र को’थर्ड पोल’ यानी तीसरा ध्रुव कहते हैं। यह दुनिया के ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद बर्फ का सबसे बड़ा भंडार है। यह इलाका एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है। गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, यांग्त्सी और मेकांग नदियां यहीं से निकलती हैं।

इन नदियों पर लगभग दो अरब लोगों का जीवन निर्भर करता है। यह जल पीने, सिंचाई और बिजली उत्पादन का मुख्य स्रोत है। इसलिए इस क्षेत्र में बर्फ के पिघलने का असर सीधे इन दो अरब लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा। यह एक वैश्विक संकट का रूप ले सकता है।

यह भी पढ़ें:  जम्मू-कश्मीर: किश्तवाड़ में बादल फटने से 46 की मौत, 220 से अधिक लापता; देखें वीडियो

तापमान वृद्धि के अलग-अलग परिदृश्य

रिपोर्ट नेतापमान बढ़ोतरी के कई संभावित परिदृश्य पेश किए हैं। यदि तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है तो क्षेत्र की पंद्रह प्रतिशत बर्ह सदा के लिए खत्म हो जाएगी। दो डिग्री की बढ़ोतरी पर सिर्फ पच्चीस प्रतिशत बर्फ बचेगी। यानी पचहत्तर प्रतिशत बर्फ पिघल जाएगी।

सबसे भयावह परिदृश्य चार डिग्री तापमान वृद्धि का है। इस स्थिति में सदी के अंत तक लगभग सारी मौसमी बर्फ गायब हो जाएगी। इससे नदियों का प्रवाह पूरी तरह असंतुलित हो जाएगा। पहले भयंकर बाढ़ें आएंगी और फिर लंबे सूखे का दौर शुरू हो जाएगा।

पेरिस समझौते के लक्ष्य भी हो सकते हैं नाकाफी

रिपोर्ट मेंएक महत्वपूर्ण बात कही गई है। वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में दो डिग्री से नीचे तापमान रखने का लक्ष्य रखा गया था। नई रिपोर्ट के मुताबिक अब यह लक्ष्य भी पर्याप्त नहीं है। इस लक्ष्य के आधार पर भी एशियाई ग्लेशियरों को बचा पाना बहुत मुश्किल होगा।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक तापमान 2.3 से 2.5 डिग्री तक बढ़ सकता है। यह अनुमान तब है जब सभी देश अपने उत्सर्जन कटौती के वादे पूरे कर लें। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की एक रिपोर्ट भी इसी आशंका की पुष्टि करती है।

यह भी पढ़ें:  रोबोटिक सर्जरी: बिहार में पहली बार रोबोट से की गई हार्ट बाइपास सर्जरी, पांच दिनों में डिस्चार्ज होगा मरीज

पहले ही खो चुके हैं तीस प्रतिशत बर्फ

रिपोर्ट केआंकड़े बताते हैं कि नुकसान की शुरुआत पहले ही हो चुकी है। वर्ष 1900 के बाद से हिंदू-कुश हिमालय क्षेत्र ने अपनी तीस प्रतिशत बर्फ पहले ही खो दी है। पिछले बीस वर्षों में बर्फ पिघलने की दर दोगुनी हो गई है। यह रुझान भविष्य के लिए बहुत अच्छा संकेत नहीं है।

ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का असर नदियों के प्रवाह पर पड़ेगा। इससे कृषि और पेयजल आपूर्ति बाधित होगी। पनबिजली परियोजनाओं की क्षमता में भी कमी आएगी। पहाड़ों में होने वाले इन बदलावों का प्रभाव दूर के मैदानी इलाकों और शहरों तक पहुंचेगा।

विकसित देशों पर जिम्मेदारी

रिपोर्ट सेजुड़े विश्लेषण में एक महत्वपूर्ण पहलू उभर कर आया है। हिंदू-कुश हिमालय में बर्फ पिघलने का सबसे बुरा असर भारत जैसे देशों पर पड़ेगा। लेकिन इस स्थिति के लिए विकसित राष्ट्र अधिक जिम्मेदार हैं। उन्हें ही तापमान नियंत्रण की दिशा में बड़े कदम उठाने होंगे।

भारत जैसे देशों में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत बहुत कम है। यह खपत वैश्विक तापमान बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं है। इसलिए जलवायु न्याय की मांग और प्रासंगिक हो जाती है। विकसित देशों को ऐतिहासिक जिम्मेदारी निभाते हुए उत्सर्जन में भारी कटौती करनी होगी।

Read more

Related News