Uttarakhand News: उत्तराखंड के धराली गांव में 5 अगस्त 2025 को आई भीषण आपदा की वजह अब सामने आ रही है। मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र में महज 28 मिमी बारिश दर्ज की गई थी, जो बादल फटने जैसी स्थिति नहीं बनाती। विशेषज्ञों का मानना है कि खीर गंगा नदी के ऊपरी कैचमेंट क्षेत्र में स्थित ग्लेशियर तालाबों के फटने से यह त्रासदी हुई होगी।
इसरो की चौंकाने वाली रिपोर्ट
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने हाल ही में जारी सैटेलाइट इमेज में खुलासा किया है कि हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, कई ग्लेशियर झीलों का आकार पिछले कुछ वर्षों में दोगुने से अधिक बढ़ गया है। यह स्थिति हिमालयी क्षेत्रों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है।
ग्लेशियर झीलों में अभूतपूर्व वृद्धि
इसरो के आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में 4068 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गेपांग घाट ग्लेशियर झील 1989 से 2022 के बीच 36.49 हेक्टेयर से बढ़कर 101.30 हेक्टेयर हो गई है। यानी 178 प्रतिशत का विस्तार हुआ है। हर साल झील के आकार में लगभग 1.96 हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई।
हिमालय में बढ़ता मानवीय दखल
विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लेशियरों के पिघलने की मुख्य वजह मानवीय गतिविधियां हैं। 1953 के बाद से एवरेस्ट पर 3000 से अधिक पर्वतारोहियों ने चढ़ाई की है। इनके द्वारा छोड़े गए कचरे और बढ़ती पर्यटन गतिविधियों ने ग्लेशियरों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। यह स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट उदाहरण है।
पिछली आपदाओं से सबक
फरवरी 2021 में रैणी गांव के पास ऋषि गंगा नदी में ग्लेशियर के टूटने से भीषण आपदा आई थी। हिमाचल प्रदेश से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक पिछले तीन वर्षों में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लेशियरों पर नियमित निगरानी और अध्ययन की तत्काल आवश्यकता है।
ग्लेशियरों का महत्व
हिमालय के ग्लेशियर गंगा, यमुना जैसी प्रमुख नदियों का स्रोत हैं। ये न केवल जल संसाधन उपलब्ध कराते हैं, बल्कि मानसून को नियंत्रित करने और तापमान संतुलन बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसरो की रिपोर्ट के अनुसार, हिमालय की 2431 झीलों में से 676 का आकार 1984 से 2016-17 के बीच 10 हेक्टेयर से अधिक बढ़ा है।
