Himachal News: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिक्षक कल्याण संघ ने गुरुवार को कुलपति कार्यालय के बाहर जोरदार प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन का मुख्य कारण प्रदेश सरकार द्वारा उच्च शिक्षा के प्रति अपनाया गया उदासीन रवैया बताया गया। संघ के पदाधिकारियों ने आरोप लगाया कि वित्त सचिव जानबूझकर विश्वविद्यालय के सरकारी अनुदान को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय का 152 करोड़ रुपये का अनुदान हर महीने आंदोलन के बाद ही किश्तों में जारी किया जाता है।
हपुटवा के अध्यक्ष डॉक्टर नितिन व्यास और महासचिव अंकुश ठाकुर ने स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालय का प्रत्येक कर्मचारी वित्त सचिव के इस रवैये से अत्यंत परेशान है। उन्होंने आगे बताया कि जहाँ विधायकों और प्रशासनिक अधिकारियों के भत्ते और वेतन में तुरंत बढ़ोतरी की जाती है, वहीं कर्मचारियों के वेतन और डीए की किस्त जारी करने के लिए वित्तीय संकट का हवाला दिया जा रहा है। इस भेदभावपूर्ण व्यवहार ने शिक्षकों में गहरा असंतोष पैदा किया है।
वित्त सचिव के विरोध में कड़ी कार्रवाई की चेतावनी
संघ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि विश्वविद्यालय के शिक्षक वित्त सचिव का पुरजोर विरोध करते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगली बैठक में वित्त सचिव को विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा। शिक्षकों ने मुख्यमंत्री से इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करने का आग्रह किया। उनकी मांग है कि वित्त सचिव को तुरंत स्थानांतरित किया जाए। इसके साथ ही विश्वविद्यालय के अनुदान को नियमित रूप से जारी करने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
हपुटवा ने अपने आंदोलन को और तेज करने का फैसला किया है। संघ ने घोषणा की कि शुक्रवार सुबह साढ़े दस बजे से सभी शिक्षक कक्षाओं का बहिष्कार करेंगे। इसके अलावा सोमवार, 10 नवंबर को शिक्षकों का एक जुलूस राजभवन तक मार्च करेगा। डॉक्टर व्यास ने कहा कि विश्वविद्यालय की गरिमा को समाप्त करने की जो कोशिश की जा रही है, उसका वे पूरी ताकत से विरोध करेंगे।
शिक्षकों की मांगों पर सरकार की चुप्पी
प्रदर्शन के दौरान शिक्षकों ने बताया कि वित्त सचिव का यह रवैया सरकार की उच्च शिक्षा के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी अनुदान के बिना विश्वविद्यालय का संचालन लगभग असंभव हो गया है। शिक्षकों का कहना है कि नियमित वेतन और भत्तों के अभाव में उनका परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। इस स्थिति ने उन्हें आंदोलन के रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के शिक्षक लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन और राज्य सरकार के बीच समन्वय के अभाव ने इस समस्या को और गहरा दिया है। शिक्षकों का मानना है कि वित्त सचिव का रवैया विश्वविद्यालय के विकास में बाधक साबित हो रहा है। उन्होंने सरकार से अपनी मांगों पर गंभीरता से विचार करने का अनुरोध किया है।
आगामी रणनीति और संभावित प्रभाव
शिक्षक संघ ने अपनी आगामी कार्ययोजना की रूपरेखा स्पष्ट कर दी है। कक्षा बहिष्कार और राजभवन मार्च के बाद भी यदि उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो आंदोलन और विस्तार पा सकता है। इस आंदोलन का विश्वविद्यालय के शैक्षणिक माहौल पर सीधा प्रभाव पड़ने की संभावना है। छात्रों की पढ़ाई बाधित होने की आशंका से भी शिक्षक अवगत हैं, लेकिन वे मजबूरी में इस रास्ते पर चल रहे हैं।
संघ के नेताओं ने बताया कि उन्होंने इस मामले को लेकर कई बार प्रशासन के सम्मुख अपनी बात रखी है। हर बार उन्हें खाली वादों के सिवा कुछ नहीं मिला। इस बार वे कोई समझौता नहीं करने के मूड में हैं। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय की गरिमा बनाए रखने और शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए शिक्षकों का सम्मान जरूरी है। यह सम्मान तभी संभव है जब उनकी मूलभूत मांगें पूरी हों।
