Himachal News: मंडी जिले के काओ गांव में स्थित मां कामाक्षा मंदिर अपनी दिव्यता और रहस्यमयी परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। करसोग उपमंडल मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर शक्ति की देवी सती को समर्पित है। एक ऊंचे चबूतरे पर बना यह मंदिर अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है।
सुकेत संस्कृति साहित्य मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेंद्र बाली हिम के अनुसार यह स्थान सतयुग से तांत्रिक सिद्धियों का केंद्र रहा है। हिमाचल के सभी शक्तिपीठों में इसका स्थान सर्वोच्च माना जाता है। मंदिर में देवी की महामुद्रा के दर्शन आज तक किसी ने नहीं किए हैं।
अनोखी परंपराएं और मान्यताएं
काओ गांव की एक अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां के लोग चारपाई पर नहीं सोते हैं। उनका मानना है कि बिस्तर पर सोने से देवी का श्राप मिल सकता है। केवल मां कामाक्षा के लिए ही मंदिर के शयनकक्ष में बिस्तर बिछाया जाता है।
पुजारी रात में देवी के विश्राम के लिए बिस्तर सजाते हैं। सुबह कपाट खुलने पर बिस्तर पर सलवटें दिखाई देती हैं। इसे देवी के वास्तव में विश्राम करने का प्रमाण माना जाता है। भक्त इसे आस्था और चमत्कार दोनों का साक्ष्य मानते हैं।
मंदिर का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
संस्कृति मर्मज्ञ डॉ. जगदीश शर्मा के अनुसार इस सिद्ध स्थल की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने अपनी माता रेणुका के वध के बाद यहां तपस्या की थी। उन्होंने मां कामाक्षा की आराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित किया।
मंदिर के गुफानुमा कक्ष में परशुराम की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह मूर्ति साढ़े तीन से चार फुट ऊंची है। यह मंदिर परशुराम द्वारा स्थापित पांच प्रमुख पीठों में से एक है। अन्य पीठ ममेल, नगर, निरथ और निरमंड में स्थित हैं।
सांस्कृतिक उत्सव और परंपराएं
काओ गांव की पहचान आठी के मेले और रात्रिफेर उत्सव से भी जुड़ी हुई है। यह पर्व हर वर्ष श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मशालों की रोशनी में भक्त नंगे पांव जोगन पीढ़ा होकर नृत्य करते हैं। नगाड़ों की गूंज के बीच देवी का जयकारा गूंजता है।
रात्रिफेर के दौरान गांव का वातावरण रहस्यमयी हो जाता है। दिग्बंधन रूपी नृत्य श्रद्धा और भक्ति का अनोखा संगम प्रस्तुत करता है। पूरा काओ गांव दिव्यता में डूब जाता है। यह उत्सव स्थानीय संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंदिर की विशेषताएं
मंदिर में एक छोटा सा छेद है जिसे मोरी कहा जाता है। इसी मार्ग से भक्त देवी महाकाली को धूप अर्पित करते हैं। मान्यता है कि सती प्रथा के समय महिलाएं सती होने से पहले इस मोरी से दर्शन करती थीं। देवी महिषासुर मर्दिनी के रूप में यहां निवास करती हैं।
मां कामाक्षा को सुकेत रियासत के सेन वंशज शासकों की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है। राजा-महाराजाओं के समय से यह परंपरा जीवित है। श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्चे मन से पूजा करने पर सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है। जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
