Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने एक महत्वपूर्ण विधेयक पारित किया है। इस विधेयक के तहत अब राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति का तरीका बदल गया है। नए नियम के अनुसार कुलाधिपति यानी राज्यपाल कुलपति की नियुक्ति करेंगे। लेकिन यह नियुक्ति राज्य सरकार की सहायता और सलाह के आधार पर होगी। इस फैसले ने राज्यपाल और सरकार के बीच चल रहे टकराव को और बढ़ा दिया है।
सदन ने हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी। साथ ही 2024 में लाया गया संशोधन विधेयक वापस ले लिया गया। 2024 का विधेयक हाल ही में राज्यपाल द्वारा कुछ सुझावों के साथ लौटाया गया था। राज्य सरकार ने फैसला किया कि जब तक केंद्र सरकार से कोई प्रतिक्रिया नहीं आती तब तक नए विधेयक पर कोई निर्णय सही नहीं होगा।
इस संशोधन ने कुलपति नियुक्ति की पुरानी प्रक्रिया को पूरी तरह बदल दिया है। मूल अधिनियम 1986 के अनुसार नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर होती थी। इस समिति में आईसीएआर और यूजीसी के प्रतिनिधि शामिल होते थे। नए संशोधन में अब सीधे राज्य सरकार की सलाह पर नियुक्ति का प्रावधान है। यह बदलाव ही विवाद का मुख्य कारण बना हुआ है।
कृषि मंत्री चंद्र कुमार ने एक और प्रस्ताव पेश किया था। वह मॉडल आईसीएआर अधिनियम के अनुरूप राज्यपाल की भूमिका को सशक्त बनाना चाहते थे। लेकिन विपक्षी सदस्यों की अनुपस्थिति में यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। परिणामस्वरूप 2023 का विधेयक बिना किसी बदलाव के ही पारित हो गया। इसने मामले को और जटिल बना दिया है।
राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव तब और बढ़ गया जब राजभवन ने जुलाई में कुलपति पदों के लिए विज्ञापन जारी किया। राज्य सरकार ने इस विज्ञापन को रद्द कर दिया। लेकिन राजभवन ने अगस्त में विज्ञापन को फिर से जारी कर दिया। इसके साथ ही आवेदन की अंतिम तिथि भी बढ़ा दी गई। इस कार्यवाही ने स्थिति को और तनावपूर्ण बना दिया।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप किया है। अदालत ने राजभवन द्वारा जारी विज्ञापन पर रोक लगा दी है। राजभवन का कहना है कि कुलाधिपति के पास वैधानिक अधिकार हैं और वही नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिए अधिकृत हैं। यह मामला अब कानूनी और संवैधानिक बहस का विषय बन गया है।
