Shimla News: हिमाचल प्रदेश भाजपा में मुख्यमंत्री पद को लेकर तनाव बढ़ गया है। जयराम ठाकुर और अनुराग ठाकुर के समर्थकों के बीच खुली टकराहट देखने को मिली। मंडी में भाजयुमो के एक कार्यक्रम में अनुराग ठाकुर के समर्थकों ने नारे लगाए। उन्होंने ‘हिमाचल का सीएम कैसा हो, अनुराग जैसा हो’ का नारा बुलंद किया।
इसके जवाब में जयराम ठाकुर ने बिना नाम लिए स्पष्ट निशाना साधा। उन्होंने कहा कि बड़े नेताओं ने पिछले चुनाव में ठीक से प्रदर्शन किया होता तो पार्टी सत्ता में होती। उन्होंने पार्टी के भीतर मौजूद गुटबाजी पर सवाल उठाए। इस घटना ने भाजपा के आंतरिक तनाव को उजागर कर दिया।
चुनावी प्रदर्शन पर सवाल
जयराम ठाकुर ने पिछले विधानसभा चुनावों के प्रदर्शन पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि बड़े नेताओं की मौजूदगी से पार्टी को कोई खास लाभ नहीं मिला। भाजपा ने 68 सीटों में से केवल 25 सीटें जीती थीं। मंडी जिले से पार्टी ने नौ सीटें जीती थीं।
हमीरपुर में पार्टी का प्रदर्शन खराब रहा था। वहां से केवल एक सीट जीतने में सफलता मिली थी। जयराम ठाकुर ने संकेत दिया कि बड़े नेताओं का कद चुनावी नतीजों में सुधार नहीं ला पाया। उनकी टिप्पणियों ने पार्टी के भीतर मौजूद मतभेदों को सार्वजनिक कर दिया।
राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई
भाजपा के भीतर वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है। जयराम ठाकुर और अनुराग ठाकुर दोनों प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। प्रेम कुमार धूमल का प्रभाव भी पार्टी में बना हुआ है। पार्टी अध्यक्ष राजीव बिंदल की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो गई है।
नेताओं के समर्थक सक्रिय हो गए हैं। वे अपने-अपने नेताओं के लिए समर्थन जुटा रहे हैं। इससे पार्टी के भीतर गुटबाजी को बल मिल रहा है। आगामी चुनावों को देखते हुए यह संघर्ष और तीव्र हो सकता है।
क्षेत्रीय समीकरणों का असर
जयराम ठाकुर सराज क्षेत्र से आते हैं। अनुराग ठाकुर जोगिंद्रनगर के दामाद हैं। यह क्षेत्रीय समीकरण भी राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं। मंडी संसदीय क्षेत्र से भाजपा ने पिछले चुनाव में 12 सीटें जीती थीं।
इस क्षेत्र का राजनीतिक महत्व बहुत अधिक है। दोनों नेता इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखना चाहते हैं। क्षेत्रीय समर्थन ही अगले मुख्यमंत्री के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाएगा। इसलिए दोनों धड़े सक्रिय हो गए हैं।
पार्टी के भविष्य पर असर
इस आंतरिक संघर्ष का पार्टी की एकता पर असर पड़ सकता है। चुनावों से पहले एकजुटता बनाए रखना बहुत जरूरी है। पार्टी प्रबंधन इस मामले में संवेदनशील रुख अपना सकता है। केंद्रीय नेतृत्व का हस्तक्षेप भी संभव है।
भाजपा पिछले चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई थी। अब पार्टी फिर से सत्ता में आने का प्रयास कर रही है। इस लक्ष्य के लिए आंतरिक एकता बहुत महत्वपूर्ण है। सभी नेता इस बात को समझते हैं लेकिन अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को छोड़ने को तैयार नहीं हैं।
