Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव को लेकर गतिरोध बना हुआ है। राज्य निर्वाचन आयोग और प्रदेश सरकार के बीच उपजे विवाद के चलते मतदाता सूचियों की छपाई का काम रुक गया है। जिला निर्वाचन अधिकारी मतदाता सूचियों का डाटा उपलब्ध नहीं करवा रहे हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया में बाधा आई है।
मुद्रण एवं लेखन सामग्री विभाग ने छपाई के टेंडर जारी कर दिए थे। रोस्टर जारी होने से पहले इन सूचियों को पंचायतों में भेजा जाना था। हर वार्ड को 20 सूची भेजी जाती है। लेकिन डाटा न मिलने से यह काम ठप पड़ा है।
अधिकारियों की उलझन
जिला निर्वाचन अधिकारी क्या करें और क्या न करें की स्थिति में फंसे हुए हैं। एक तरफ सरकार ने डिजास्टर एक्ट लागू किया हुआ है। दूसरी ओर निर्वाचन आयोग ने चुनावी सामग्री उठाने के आदेश जारी किए हैं। इन हालात में दो उपायुक्तों ने मुख्य सचिव को पत्र लिखा है।
उन्होंने स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया है। अधिकारी स्पष्ट दिशा-निर्देश चाहते हैं। वे इस उलझन में हैं कि किसके आदेश माने जाएं। इस स्थिति ने चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित किया है।
मतभेद के मुद्दे
पंचायतों के पुनर्गठन पर लगी रोक का फैसला वापस लेने को आयोग तैयार नहीं है। सरकार ने मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट का क्लाॅज 12.1 हटाने का आग्रह किया है। आयोग का मानना है कि इस मामले को अदालत में ही सुलझाया जा सकता है।
दोनों पक्षों के बीच यह मतभेद चुनाव प्रक्रिया में बाधा बन रहे हैं। सहमति न बन पाने से काम रुका हुआ है। समय बीतता जा रहा है और चुनाव की तैयारियां अटकी हुई हैं।
चुनाव की नई संभावित तारीख
अप्रैल-मई 2025 में चुनाव होने की संभावना जताई जा रही है। सरकार की मशीनरी और सहयोग के बिना चुनाव कराना मुश्किल है। आयोग भी इस बात को मान रहा है। अधिकांश चुनाव कार्य में शिक्षा विभाग के कर्मचारी लगते हैं।
हिमाचल में अभी डिजास्टर एक्ट लागू है। दिसंबर-जनवरी में बर्फबारी की संभावना है। इसके बाद स्कूलों में परीक्षाएं शुरू हो जाती हैं। इन सभी कारणों से चुनाव में देरी हो रही है।
पंचायतों का भविष्य
पंचायतीराज संस्थाओं का कार्यकाल जनवरी 2026 में पूरा हो रहा है। ऐसे में पंचायतों की शक्तियां बीडीओ और पंचायत सचिव को दी जा सकती हैं। यह अधिकारी पंचायतों के विकास कार्यों की निगरानी करेंगे।
यह व्यवस्था तब तक के लिए हो सकती है जब तक नई पंचायतों का गठन नहीं हो जाता। इस बीच विकास कार्यों में कोई रुकावट न आए इसका प्रबंध किया जाएगा। सरकार इस दिशा में आवश्यक कदम उठा सकती है।
निर्वाचन आयोग की भूमिका
राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है। आयोग ने चुनावी प्रक्रिया शुरू कर दी थी। लेकिन सरकारी सहयोग न मिलने से काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है। आयोग के पास सीमित संसाधन हैं।
बिना प्रशासनिक सहयोग के चुनाव संपन्न कराना चुनौतीपूर्ण है। आयोग ने सभी तैयारियां पूरी कर ली थीं। टेंडर प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी थी। लेकिन डाटा न मिलने से सब कुछ थम गया है।
