Himachal News: हिमाचल प्रदेश में अब आपातकाल के दौरान जेल गए नेताओं को पेंशन नहीं मिलेगी। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कांग्रेस सरकार के इस महत्वपूर्ण फैसले को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश आपातकालीन कैदी पेंशन संशोधन विधेयक 2023 कानून बन गया है। इस नए कानून के तहत उन सभी नेताओं की मासिक पेंशन बंद हो गई है जिन्हें 1975-77 के आपातकाल में जेल जाने के आधार पर वित्तीय सहायता दी जा रही थी। सरकार का कहना है कि यह कदम राजकोष पर पड़ने वाले अनावश्यक बोझ को कम करेगा।
इस विधेयक को मुख्यमंत्री सुक्खू सरकार ने दो साल पहले बजट सत्र में पेश किया था। इसने पूर्ववर्ती भाजपा सरकार द्वारा लाए गए विधेयक को निरस्त कर दिया है। भाजपा शासन के दौरान जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व काल में 18 मार्च 2021 को यह विधेयक लाया गया था। उस समय विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी ने इसका जोरदार विरोध किया था। वर्तमान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी उस समय इसके विरोध में थे।
पेंशन योजना का इतिहास और प्रावधान
भाजपा सरकार द्वारा लाए गए मूल विधेयक के प्रावधानों के अनुसार वर्ष 1975 की आपातकालीन स्थिति में 15 दिन से कम जेल में रहने वाले लोगों को 12 हजार रुपए मासिक दिए जाते थे। इससे अधिक कारावास की अवधि वाले नेताओं को 20 हजार रुपए मासिक सम्मान राशि दी जाती थी। राज्य में इस योजना का लाभ लेने वालों में शांता कुमार, राधारमण शास्त्री और सुरेश भारद्वाज जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे। शांता कुमार और राधारमण शास्त्री नाहन सेंट्रल जेल में रहे थे।
राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में लगभग 105 लोग इस पेंशन योजना का लाभ प्राप्त कर रहे थे। भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल भी इस योजना के लाभार्थी थे जो आपातकाल के दौरान हरियाणा की जेल में रहे थे। उन्हें हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दोनों राज्यों से सम्मान राशि प्राप्त हो रही थी। नए कानून के लागू होने के बाद अब इन सभी लाभार्थियों का पेंशन भुगतान स्थायी रूप से बंद हो गया है।
सरकारी संसाधनों के उपयोग पर जोर
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस निर्णय को पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार जनता के पैसे का इस्तेमाल जनहित के कार्यों में करना चाहती है न कि विशेष वर्ग के लाभ के लिए। सरकार का मानना है कि इससे बचत हुए संसाधनों को विकास कार्यों और जनकल्याणकारी योजनाओं में अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकेगा। यह निर्णय सरकार की वित्तीय अनुशासन की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
राज्य सरकार ने इस विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद आधिकारिक तौर पर लागू कर दिया है। इसके साथ ही दशकों से चली आ रही इस पेंशन व्यवस्था का अंत हो गया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय राज्य की राजनीति में एक नया मोड़ साबित हो सकता है। दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों ने सत्ता और विपक्ष में रहते हुए इस मुद्दे पर अलग-अलग रुख अपनाया है।
