Himachal News: हिमाचल प्रदेश में आगामी पंचायत चुनाव के कारण विकास कार्य पूरी तरह से ठप हो गए हैं। प्रदेश की 3577 पंचायतों में विकास कार्यों के लिए लाखों रुपये उपलब्ध होने के बावजूद काम नहीं हो रहे। पंचायत प्रतिनिधि चुनावी अनिश्चितता के कारण कार्यों में रुचि नहीं दिखा रहे।
आरक्षण रोस्टर अभी तक जारी नहीं होने के बावजूद अधिकतर क्षेत्रों में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों ने जनसंपर्क अभियान तेज कर दिया है। बीते पांच वर्षों से 3615 पंचायतों में चल रहे विकास कार्य अब पूरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। नए शहरी निकाय बनने से पंचायतों की संख्या में कमी आई है।
मनरेगा कार्यों में भी गिरावट
अक्टूबर और नवंबर महीनोंमें विकास कार्यों में तेजी आने की उम्मीद थी। लेकिन पंचायत चुनाव के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। मनरेगा के तहत होने वाले कार्यों में भी इन दिनों महत्वपूर्ण कमी देखने को मिली है। स्थानीय लोग भी कार्यों में भाग लेने से परहेज कर रहे।
पंचायत प्रतिनिधि अपना कार्यकाल समाप्त होने के कारण नए परियोजनाओं शुरू करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। उनका मानना है कि नए निर्वाचित प्रतिनिधियों के आने के बाद ही विकास कार्यों को गति मिल पाएगी। इस स्थिति ने ग्रामीण विकास पर गंभीर प्रभाव डाला है।
ग्राम सभाओं में कोरम की कमी
प्रदेश कीपंचायतों में ग्राम सभाओं की बैठकों में कोरम पूरा नहीं हो रहा। बैठकों के बिना विकास कार्यों को मंजूरी नहीं मिल पा रही। नई परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया भी अटकी हुई है। पुराने स्वीकृत परियोजनाओं के तहत केवल छोटे-मोटे कार्य ही हो पा रहे।
इस परिस्थिति ने पंचायतों के विकास कार्यों को पूरी तरह से प्रभावित किया है। वित्तीय बजट उपलब्ध होने के बावजूद कोष का उपयोग नहीं हो पा रहा। इससे स्थानीय बुनियादी ढांचे का विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा। लोगों को रोज़गार के अवसर भी कम मिल रहे।
जनप्रतिनिधियों में विकास कार्यों के प्रति उदासीनता
शिमलाजिले के जुब्बल में बागी पंचायत के पूर्व प्रधान राजकुमार बिंटा ने बताया कि सभी प्रतिनिधियों का कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो रहा। ऐसे में वे विकास कार्यों में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे। नए प्रतिनिधियों के चुनाव के बाद ही परिस्थिति सामान्य हो पाएगी।
उन्होंने बताया कि लोगों ने पहले से अनुमान लगा लिया है कि कौन सी सीटें आरक्षित होंगी। कई क्षेत्रों में चुनावी जनसंपर्क भी शुरू हो गया। राजनीतिक गतिविधियाँ के बढ़ने से प्रशासनिक कार्य पृष्ठभूमि में चले गए। इससे स्थानीय शासन प्रभावित हुई।
प्राकृतिक आपदा का अतिरिक्त प्रभाव
प्रदेश मेंजून से सितंबर तक बरसात के दौरान आई प्राकृतिक आपदा ने भी विकास कार्यों को प्रभावित किया। अनेक पंचायतों में पहले से ही कार्य लटके हुए थे। चुनावी अनिश्चितता ने इस परिस्थिति को और बिगाड़ दिया। बहाली कार्य भी उचित तरीके से नहीं हो पा रहे।
पंचायतों में विकास कार्यों की गति बिल्कुल धीमा हो गई। पर्याप्त बजट उपलब्धता के बावजूद परियोजनाओं का निष्पादन नहीं हो पा रहा। प्रतिनिधियों का केंद्र अब चुनाव पर केंद्रित हो गया। इसने ग्रामीण विकास प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित किया।
