Himachal News: हिमाचल प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर विवाद गहरा गया है। राज्य के दो अधिवक्ताओं ने उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की है। यह याचिका सरकार द्वारा पंचायत चुनावों में लगातार की जा रही देरी के खिलाफ है। मुख्य सचिव ने आपदा प्रबंधन अधिनियम का हवाला देकर चुनाव टालने की बात कही थी। वहीं कैबिनेट ने पुनर्गठन का फैसला लेकर और देरी की आशंका पैदा कर दी है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग ने संविधान के तहत निर्धारित समय सीमा में चुनाव कराने की कोई ठोस तैयारी नहीं की। पिछले पंचायत चुनाव दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच संपन्न हुए थे। संविधान के अनुच्छेद 243-ई के अनुसार पंचायतों का कार्यकाल पांच वर्ष से अधिक नहीं हो सकता। इस हिसाब से नए चुनाव जनवरी 2026 से पहले कराए जाने अनिवार्य हैं।
अधिवक्ताओं का कहना है कि यह याचिका किसी राजनीतिक दल या व्यक्तिगत हित के लिए नहीं दायर की गई है। यह एक शुद्ध जनहित याचिका है जिसका उद्देश्य लोकतंत्र की मजबूती है। यदि समय पर चुनाव नहीं हुए तो पंचायत संस्थाएं अपनी वैधानिक स्थिति खो देंगी। इससे स्थानीय स्वशासन की प्रक्रिया पूरी तरह से ठप्प हो जाएगी।
सरकार के तर्क और चुनौती
राज्य सरकार ने आपदा प्रबंधन अधिनियम को चुनाव में देरी का कारण बताया है। मुख्य सचिव ने कहा कि आपदा के बाद हालात सामन्य होने पर चुनाव कराए जाएंगे। इसके अलावा कैबिनेट द्वारा पंचायतों के पुनर्गठन का निर्णय भी एक बड़ा कारण है। इस प्रक्रिया में लगभग दो से ढाई महीने का समय लगने का अनुमान है।
याचिकाकर्ताओं ने सरकार के इन तर्कों को चुनौती देते हुए कहा है कि यह केवल समय बर्बाद करने की रणनीति है। अनिश्चितकाल के लिए आपदा का हवाला देकर चुनाव स्थगित नहीं किए जा सकते। उन्होंने न्यायालय से हस्तक्षेप करने और चुनाव कराने के निर्देश देने का आग्रह किया है। इससे पंचायती राज व्यवस्था को बचाया जा सकेगा।
चुनावों का व्यापक दायरा
इन चुनावों का दायरा बहुत व्यापक है और ये कई स्तरों पर होने हैं। पंचायतों में पांच स्तरीय चुनाव एक साथ होंगे। इनमें प्रधान, उप प्रधान, वार्ड सदस्य, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्य के पद शामिल हैं। शहरी क्षेत्रों में नगर निकाय चुनाव भी इसी के साथ होंगे।
राज्य के 71 नगर निकायों में पार्षदों के लिए मतदान होना है। इस पूरी प्रक्रिया में बड़ी संख्या में पदों के लिए चुनाव कराया जाना है। इसलिए इनकी तैयारी में काफी समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है। राज्य निर्वाचन आयोग ने दिसंबर का महीना चुनाव के लिए प्रस्तावित किया है।
मौसम की चुनौती
राज्य निर्वाचन आयोग दिसंबर में चुनाव कराना चाहता है। इसके पीछे मुख्य कारण जनवरी में पड़ने वाली भीषण सर्दी और बर्फबारी है। जनवरी के महीने में राज्य के कई पहाड़ी जिलों में भारी बर्फबारी होती है। इन जिलों में शिमला, मंडी, लाहौल स्पीति, किन्नौर, कांगड़ा, कुल्लू और सिरमौर शामिल हैं।
इन क्षेत्रों में सर्दियों में यातायात बाधित हो जाता है। सड़कें बर्फ से बंद हो जाती हैं जिससे मतदाताओं और चुनाव कर्मचारियों की आवाजाही मुश्किल हो जाती है। इसलिए दिसंबर से पहले चुनाव प्रक्रिया पूरी कर लेना आयोग की प्राथमिकता है। यह मतदाताओं की सुरक्षा और भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
संवैधानिक बाध्यता
संविधान का अनुच्छेद 243-ई स्पष्ट रूप से पंचायतों के कार्यकाल और चुनाव को नियंत्रित करता है। इसके अनुसार किसी भी पंचायत का कार्यकाल पांच साल से अधिक नहीं हो सकता। कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही अगले चुनाव कराए जाने चाहिए। यह एक संवैधानिक अनिवार्यता है जिसका पालन करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है।
मौजूदा पंचायतों का कार्यकाल जनवरी 2026 में समाप्त हो रहा है। इसलिए नए चुनाव इससे पहले कराए जाना आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है। पंचायतें भंग हो जाएंगी और प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा जाएगी।
लोकतंत्र पर प्रभाव
स्थानीय स्वशासन लोकतंत्र की नींव का पहला पायदान माना जाता है। पंचायतें ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और प्रशासन की रीढ़ हैं। इनके बिना सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन और जनता की समस्याओं का समाधान मुश्किल हो जाता है। चुनाव न होने से लोकतांत्रिक प्रक्रिया में गंभीर बाधा उत्पन्न होगी।
जनता का अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार छिन जाएगा। इससे लोकतंत्र की मूल भावना को ठेस पहुंचेगी। याचिकाकर्ताओं ने इसी बात को रेखांकित किया है कि लोकतंत्र की जड़ें मजबूत बनाए रखना सबसे जरूरी है। न्यायालय का हस्तक्षेप इसलिए आवश्यक हो गया है।
भविष्य की राह
अब सबकी नजरें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय पर टिकी हैं। न्यायालय इस मामले में क्या फैसला सुनाता है यह बहुत महत्वपूर्ण होगा। यह तय होगा कि राज्य में पंचायत चुनाव समय पर होंगे या नहीं। सरकार और निर्वाचन आयोग दोनों को मिलकर कोई ठोस रोडमैप तैयार करना होगा।
ताकि सभी बाधाओं को दूर करते हुए जल्द से जल्द चुनाव कराए जा सकें। मौसम की चुनौतियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के बीच संतुलन बनाना जरूरी है। इससे ही राज्य की लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाया जा सकेगा। आने वाले दिनों में इस मामले में और विकास की उम्मीद है।
