Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया है। अदालत ने कहा कि इसके लिए सिर्फ पर्यटकों से ही नहीं बल्कि राज्य के लोगों से भी शुल्क लिया जाना चाहिए। यह शुल्क बिजली बिल के साथ जोड़कर वसूला जा सकता है। कोर्ट ने सरकार से इस मामले में एक शपथ पत्र दाखिल करने को भी कहा है।
मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की पीठ ने यह सुनवाई की। अदालत को शिमला नगर निगम द्वारा पारित ग्रीन फीस प्रस्ताव की जानकारी दी गई। शहरी विकास विभाग ने पर्यटक वाहनों पर प्रवेश बिंदुओं पर दस रुपये उपकर लगाने का सुझाव दिया था।
टोल नीति में शामिल नहीं हो सका प्रस्ताव
राज्य कर और आबकारी विभाग ने अदालत को सूचित किया कि टोल नीति 2025-26 को कैबिनेट ने पहले ही मंजूरी दे दी थी। इस वजह से पर्यटक वाहनों पर उपकर का प्रस्ताव इस स्तर पर नीति में शामिल नहीं किया जा सका। कोर्ट ने पाया कि हिमाचल आने वाले पर्यटक वाहनों का कोई सही रिकॉर्ड भी नहीं है।
अदालत को बताया गया कि अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 92 ब्लॉकों में मैटीरियल रिकवरी फैसिलिटी स्थापित करने की जरूरत है। इस पर प्रति ब्लॉक कम से कम 50 लाख रुपये का प्रारंभिक खर्च आएगा। इससे प्लास्टिक और गीले कचरे को अलग करने में मदद मिलेगी।
शहरी क्षेत्रों में सुधार की जरूरत
शहरी क्षेत्रों के लिए 48 कचरा प्रबंधन केंद्रों को नियमों के अनुरूप अपग्रेड करने की आवश्यकता है। अदालत ने कहा कि शहरी विकास विभाग में व्यापक सुधार और एक दूरदर्शी योजना बनाने की जरूरत है। इसकी स्पष्ट रूप से कमी देखी जा रही है।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उपकर लगाने जैसी योजनाओं के माध्यम से वित्त कैसे जुटा सकती है। इस संबंध में एक उपयुक्त हलफनामा दाखिल करने को कहा गया। मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
कचरा हटाने की समय सीमा तय
शहरी विकास विभाग के सचिव ने अदालत को बताया कि केंदुवाला साइट बद्दी में 76,905 मीट्रिक टन कूड़ा जमा है। इसे भविष्य की गणना के लिए एक संदर्भ बिंदु माना जाएगा। कचरा प्रसंस्करण हटाने और टेंडर प्रक्रिया शुरू करने के लिए 20 दिसंबर तक की समय सीमा तय की गई है।
बद्दी में सॉलिड वेस्ट प्रोसेस प्लांट की निरीक्षण रिपोर्ट से पता चला कि 2018 से बड़े पैमाने पर कचरा 30 बीघा जमीन पर डंप किया गया है। कंपनी को 3.41 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है लेकिन 2.79 करोड़ रुपये रोक दिए गए हैं।
भुगतान को लेकर विवाद
कचरा प्रसंस्करण न होने के कारण 45 फीसदी भुगतान रोका गया है। ठेकेदार ने भुगतान रोके जाने को काम में बाधा बताया है। अदालत ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए शहरी विकास निदेशक के साथ एक बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने यह रिपोर्ट मांगी है कि अक्टूबर 2025 के दौरान कंपनी ने कितनी प्रगति की है। इससे प्लांट के कामकाज की स्थिति का सही आकलन हो सकेगा। सरकार को इस संबंध में जल्द ही रिपोर्ट दाखिल करनी होगी।
व्यापक योजना की आवश्यकता
अदालत ने जोर देकर कहा कि कचरा प्रबंधन के लिए एक व्यापक और दीर्घकालिक योजना बनाने की जरूरत है। केवल पर्यटकों पर निर्भर रहने के बजाय स्थानीय निवासियों से भी शुल्क वसूलना एक व्यवहारिक समाधान हो सकता है। इससे धन का एक स्थायी स्रोत उपलब्ध हो सकेगा।
बिजली बिल के साथ शुल्क जोड़ने का सुझाव इसलिए दिया गया ताकि इसे आसानी से लागू किया जा सके। इस पद्धति से शुल्क वसूली में होने वाली कठिनाइयों को कम किया जा सकता है। यह एक कारगर समाधान साबित हो सकता है।
अगली सुनवाई का इंतजार
अब सभी की नजरें 15 दिसंबर को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हैं। इस दौरान सरकार द्वारा दाखिल हलफनामे पर विचार किया जाएगा। साथ ही कचरा प्रबंधन के लिए धन जुटाने के तरीकों पर चर्चा होगी।
सरकार को कोर्ट के समक्ष एक ठोस रोडमैप पेश करना होगा। इससे यह स्पष्ट हो सकेगा कि राज्य ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की चुनौती से कैसे निपटने की योजना बना रहा है। आने वाले दिनों में इस मामले में और विकास की उम्मीद है।
