Shimla News: हिमाचल प्रदेश में इस साल मानसून ने भीषण तबाही मचाई है। बीस जून से अब तक राज्य में भारी बारिश, बादल फटने और भूस्खलन की घटनाओं में 417 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़ों के अनुसार, अब तक 1,502 मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो गए हैं, जिससे 1500 से अधिक परिवार बेघर हो गए हैं।
राज्य में इस मानसून सीजन में सामान्य से 46 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई। औसतन 1010.9 मिलीमीटर बारिश ने कई इलाकों में भारी विनाश लाया। इस अतिवृष्टि के कारण बादल फटने की 46 और अचानक बाढ़ की 98 घटनाएं सामने आई हैं।
भूस्खलन की 145 से अधिक घटनाओं ने स्थिति और गंभीर बना दी। इन प्राकृतिक आपदाओं में 231 लोगों की जान चली गई। इसके अलावा सड़क दुर्घटनाओं में 181 लोगों के मारे जाने की सूचना है। लगभग 477 लोग घायल हैं जबकि 45 लोग अभी भी लापता हैं।
राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र के मुताबिक, 6,503 घरों को आंशिक नुकसान पहुंचा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर की क्षति का अब तक का अनुमानित आंकड़ा 4582 करोड़ रुपये से अधिक है। लगातार हो रही इन आपदाओं ने पहाड़ी राज्य में अनिश्चितता की स्थिति पैदा कर दी है।
राज्य का यातायात तंत्र अस्त-व्यस्त हो गया है। मंगलवार शाम तक तीन राष्ट्रीय राजमार्गों सहित कुल 655 सड़कें बंद थीं। इससे कई दूरदराज के इलाके दुनिया से कट गए हैं और राहत कार्यों में बाधा आ रही है।
बुनियादी सुविधाएं भी गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। 924 बिजली ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त होने से बड़े पैमाने पर बिजली आपूर्ति बाधित है। पेयजल आपूर्ति की 243 योजनाएं भी ठप पड़ गई हैं, जिससे लोगों को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
राहत और बचाव कार्य लगातार जारी हैं। प्रशासन प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने और उन्हें राहत सामग्री उपलब्ध कराने में जुटा हुआ है। हालांकि, बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है, जिससे काम में लगातार अड़चनें आ रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश में मानसून की इस तीव्रता के पीछे जलवायु परिवर्तन एक बड़ा कारण हो सकता है। पहाड़ी इलाकों में अत्यधिक निर्माण और वनों की कटाई ने भी आपदा के जोखिम को बढ़ा दिया है। इस तबाही ने राज्य में बेहतर आपदा प्रबंधन की जरूरत को रेखांकित किया है।
