Himachal News: हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल ने नगर निगमों के महापौर और उप महापौर का कार्यकाल बढ़ाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। अब इनका कार्यकाल ढाई वर्ष से बढ़ाकर पांच वर्ष कर दिया गया है। यह निर्णय मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई बैठक में लिया गया।
इस निर्णय का सीधा लाभ शिमला नगर निगम के महापौर और उप महापौर को मिलेगा। उनका ढाई वर्ष का कार्यकाल नवंबर 2025 में समाप्त हो रहा था। अब वे पूरे पांच साल तक अपने पद पर बने रह सकेंगे।
मानदेय वृद्धि के निर्णय
मंत्रिमंडल ने पांच सौ दस विशेष पुलिस अधिकारियों के मानदेय में तीन सौ रुपये प्रति माह की वृद्धि को मंजूरी दी। इनमें चार सौ तीन जनजातीय क्षेत्रों में और एक सौ सात गैर जनजातीय क्षेत्रों में तैनात अधिकारी शामिल हैं। यह निर्णय एक अप्रैल 2025 से लागू होगा।
शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के मानदेय में भी वृद्धि की गई। प्रशिक्षित स्नातक अध्यापकों के मानदेय में पांच सौ रुपये प्रतिमाह की बढ़ोतरी हुई। शास्त्रीय एवं स्थानीय भाषा अध्यापकों को भी इसका लाभ मिलेगा।
शिक्षकों को मिलेगा लाभ
जूनियर बेसिक ट्रेनिंग अध्यापकों के मानदेय में पांच सौ रुपये की वृद्धि हुई है। व्याख्याताओं और डिप्लोमा एवं प्राथमिक शिक्षा अध्यापकों को भी यह लाभ मिलेगा। मध्याह्न भोजन कार्यकर्ताओं के मानदेय में भी इजाफा किया गया है।
अंशकालिक जलवाहकों सहित स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यापकों को इसका फायदा मिलेगा। इन सभी वृद्धियों को पूर्वव्यापी स्वीकृति प्रदान की गई है। सभी निर्णय एक अप्रैल 2025 से प्रभावी होंगे।
टैक्सियों के इलेक्ट्रिक रूपांतरण को मंजूरी
मंत्रिमंडल ने परिवहन विभाग को एक हज़ार पेट्रोल और डीजल टैक्सियों को इलेक्ट्रिक वाहनों में बदलने की अनुमति दी है। इसके लिए राजीव गांधी स्वरोजगार योजना के तहत चालीस प्रतिशत सब्सिडी का प्रावधान किया गया है। यह कदम पर्यावरण संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा।
इलेक्ट्रिक वाहनों में रूपांतरण से प्रदूषण में कमी आएगी। टैक्सी चालकों को ईंधन की बचत होगी। इससे स्वरोजगार को भी बढ़ावा मिलेगा। राज्य सरकार का यह प्रयास सराहनीय है।
नगर निगम सुधार का औचित्य
उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने बताया कि ढाई साल के कार्यकाल से खरीद-फरोख्त की आशंका रहती है। पंचायती राज संस्थाओं में कार्यकाल पांच साल का होता है। इसलिए नगर निगमों में भी यह बदलाव किया गया है।
इससे स्थानीय निकायों के कामकाज में स्थिरता आएगी। विकास कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा। नगर निगमों की कार्यप्रणाली में सुधार होगा। यह निर्णय नागरिकों के हित में साबित होगा।
