Himachal News: हिमाचल प्रदेश सरकार ने महापौर और उप महापौर के कार्यकाल में बड़ा बदलाव किया है। अब उनका कार्यकाल साढ़े दो साल के बजाय पूरे पांच साल का होगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया। सरकार ने शनिवार को इस संबंध में अध्यादेश जारी कर दिया।
यह अध्यादेश विधानसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा। इसके पारित होने के बाद नगर निगम अधिनियम में औपचारिक संशोधन होगा। इस बदलाव से नगर निगमों के कामकाज में स्थिरता आने की उम्मीद है।
पुराने और नए नियम में अंतर
पहले नगर निगम कानून के तहत महापौर और उप महापौर का कार्यकाल साढ़े दो साल निर्धारित था। इस अवधि के बाद आरक्षण रोस्टर के आधार पर नए प्रतिनिधियों का चयन किया जाता था। नए नियम के तहत अब एक ही महापौर और उप महापौर पूरे पांच साल तक पद पर बने रहेंगे।
इस बदलाव से प्रशासनिक निरंतरता बनी रहेगी। विकास योजनाओं के क्रियान्वयन में स्थिरता आएगी। दीर्घकालिक परियोजनाओं को पूरा करने में सहूलियत होगी। नगर निगमों के कामकाज में सुधार की संभावना बढ़ेगी।
विपक्ष की आपत्ति
शिमला नगर निगम की हालिया बैठक में इस फैसले पर आपत्ति जताई गई। विपक्षी भाजपा पार्षदों ने इस निर्णय का विरोध किया। कुछ कांग्रेस पार्षदों ने भी इस पर सवाल उठाए। बावजूद इसके सरकार ने अपने निर्णय को अमल में लाने का काम किया।
सरकार ने मंत्रिमंडल के निर्णय के अनुरूप अध्यादेश जारी कर दिया। इस मामले में सरकार का रुख स्पष्ट दिखाई दे रहा है। विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार ने इस नीति को आगे बढ़ाया है। अब यह अध्यादेश विधानसभा में पेश होगा।
रिक्त पदों के लिए प्रावधान
अध्यादेश में रिक्त पदों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। यदि महापौर या उप महापौर इस्तीफा देते हैं या पद रिक्त होता है। तो उसी वर्ग से नया प्रतिनिधि चुना जाएगा। इससे आरक्षण के नियमों का पालन सुनिश्चित होगा।
यदि उप महापौर महापौर का पद संभालते हैं। तो उप महापौर के पद के लिए नया चुनाव कराया जाएगा। इस व्यवस्था से संवैधानिक प्रावधानों का पालन हो सकेगा। नगर निगम के कामकाज में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होगी।
प्रशासनिक स्थिरता के लाभ
इस बदलाव के कई सकारात्मक पहलू हैं। नगर निगमों को दीर्घकालिक योजनाएं बनाने में मदद मिलेगी। विकास कार्यों में निरंतरता बनी रहेगी। महापौर को परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा। नागरिकों को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी।
कार्यकाल बढ़ने से महापौर जिम्मेदारी के साथ काम कर सकेंगे। उन्हें फैसले लेने में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी। नगर प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ेगी। शहरी विकास की गति तेज होगी।
भविष्य की योजनाएं
सरकार ने इस अध्यादेश को विधानसभा सत्र में पेश करने का निर्णय लिया है। विधानसभा से पारित होने के बाद यह कानून का रूप ले लेगा। इससे नगर निगमों के चुनाव प्रक्रिया में बदलाव आएगा। आने वाले समय में नगर निगम चुनाव इसी नियम के तहत होंगे।
सरकार का मानना है कि इससे स्थानीय निकायों को मजबूती मिलेगी। नगर प्रशासन में सुधार होगा। शहरी क्षेत्रों का समग्र विकास संभव हो सकेगा। यह निर्णय प्रदेश के शहरी विकास में मील का पत्थर साबित होगा।
