Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) देने के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि एकल जज के फैसले में कोई गलती नहीं है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने एकल जज के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी। कोर्ट ने सरकार की रोक लगाने वाली अर्जी खारिज कर दी है।
सरकार की अपील पर कोर्ट का सख्त रुख
मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की। राज्य सरकार ने एकल जज के 30 जुलाई 2025 के फैसले पर रोक लगाने की मांग की थी। सरकार ने यह अपील 59 दिनों की देरी से दायर की थी। खंडपीठ ने सरकार के आवेदन को खारिज करते हुए मुख्य अपील को स्वीकार कर लिया है। हालांकि, कोर्ट ने अवकाश देने के आदेश पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई है। यह हिमाचल प्रदेश की महिला कर्मचारियों के लिए राहत की खबर है।
क्या था एकल जज का फैसला?
न्यायाधीश संदीप शर्मा की एकल पीठ ने पहले ही ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। उन्होंने कहा था कि सरकारी नौकरी पाने के बाद अगर कोई महिला तीसरे बच्चे की मां बनती है, तो वह मातृत्व अवकाश की हकदार है। यह फैसला स्टाफ नर्स अर्चना शर्मा की याचिका पर आया था। कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को तुरंत प्रभाव से अवकाश देने का आदेश दिया था। इसके बाद सरकार ने डबल बेंच में अपील की थी। याचिकाकर्ता ने पहले ही कैविएट याचिका दायर कर रखी थी।
तीसरे बच्चे से जुड़ा है पूरा मामला
यह पूरा विवाद स्टाफ नर्स अर्चना शर्मा के तीसरे बच्चे के जन्म से जुड़ा है।
- याचिकाकर्ता ने 5 मार्च 2025 को बच्चे को जन्म दिया।
- उन्होंने 6 मार्च को सिविल अस्पताल पांवटा साहिब के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी को छुट्टी का आवेदन दिया।
- सक्षम अधिकारियों ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया।
- याचिकाकर्ता के सेवा में आने से पहले दो बच्चे थे।
- यह तीसरा बच्चा सरकारी सेवा में शामिल होने के बाद हुआ था।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि ऐसे मामलों में महिलाओं को मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता।
