Himachal News: हिमाचल प्रदेश के सरकारी स्कूलों में काम कर रहे 8727 शिक्षक टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं हैं। इनमें 5552 जेबीटी, 1486 टीजीटी, 853 एचटी, 459 सीएचटी और 377 सीएंडवी शिक्षक शामिल हैं। सभी की नियुक्ति वर्ष 2010 से पहले हुई थी और इनकी सेवानिवृत्ति में अभी पांच वर्ष या अधिक समय शेष है।
राज्य सरकार इन शिक्षकों की नौकरियां बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है। शिक्षा सचिव राकेश कंवर ने स्कूल शिका निदेशक आशीष कोहली को इस संबंध में त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। इससे पहले कई अन्य राज्य भी ऐसी ही याचिकाएं दायर कर चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने पहली सितंबर को एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया था। इसके अनुसार कक्षा एक से आठवीं तक पढ़ाने वाले सभी सरकारी और निजी स्कूल शिक्षकों के लिए टीईटी उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। जिन शिक्षकों की सेवानिवृत्ति में पांच साल से अधिक समय बचा है, उन्हें यह परीक्षा पास करनी होगी।
परीक्षा पास न कर पाने वाले शिक्षकों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ सकती है। हिमाचल प्रदेश में टीईटी परीक्षा की शुरुआत वर्ष 2010 में हुई थी। इससे पहले नियुक्त किए गए अधिकतर शिक्षकों ने यह परीक्षा नहीं दी है। कई शिक्षक तो अब तक सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
विभागीय तैयारियां
स्कूल शिक्षा निदेशालय ने सभी जिलों के उपनिदेशकों से प्रासंगिक डेटा एकत्रित किया था। उनसे पूछा गया था कि उनके जिले में कितने ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने टीईटी पास नहीं किया है। जिलों से प्राप्त जानकारी के आधार पर ही 8727 की संख्या सामने आई है। यह आंकड़ा चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।
शिक्षा विभाग ने इस मामले में विधि विभाग से भी आवश्यक कानूनी परामर्श प्राप्त कर ली है। विभाग जल्द ही सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाला है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य पहले ही इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गए हैं। अब हिमाचल प्रदेश की बारी है।
शिक्षकों की स्थिति
इन 8727 शिक्षकों में से अधिकांश को दो दशक से अधिक का शिक्षण अनुभव प्राप्त है। उनकी नियुक्ति वर्ष 2010 से पहले विभिन्न सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं के के माध्यम से हुई थी। उस समय टीईटी योग्यता अनिवार्य नहीं थी। अब अचानक यह मांग उनकी नौकरियों के लिए खतरा बन गई है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम वर्ष 2009 में लागू हुआ था। इसके बाद ही टीईटी की शुरुआत हुई। हिमाचल प्रदेश ने 2010 में यह परीक्षा शुरू की। राज्य सरकार का मानना है कि पुराने शिक्षकों के पास पर्याप्त अनुभव है और उन्हें इस आधार पर छूट मिलनी चाहिए।
आगे की कार्यवाई
शिक्षा सचिव राकेश कंवर ने सोमवार को औपचारिक निर्देश जारी किए। उन्होंने निदेशक स्कूल शिक्षा को तत्काल उचित कार्यवाही शुरू करने को कहा। इसका उद्देश्य शिक्षकों को जल्द से जल्द कानूनी राहत प्रदान करना है। विधानसभा सत्र के दौरान ही इस मामले पर विस्तार से चर्चा हुई थी।
सरकार ने 16 बिंदुओं पर विस्तृत जानकारी भी मांगी थी। इसके अलावा छुट्टियों और आधिकारिक दौरे पर भी अस्थायी प्रतिबंध लगाई गई है। सरकार का पूरा केंद्र अब इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में प्रभावी रूप से उपस्थित करने पर है। इससे हज़ारों शिक्षकों का भविष्य तय होगा।
