Himachal News: हिमाचल प्रदेश में वन भूमि पर अवैध कब्जे का मामला गहराता जा रहा है। सरकार पर अतिक्रमणकारियों को बचाने और संवैधानिक नियमों को तोड़ने के गंभीर आरोप लग रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 48A के तहत पर्यावरण की रक्षा करना राज्य की जिम्मेदारी है। लेकिन, यहां सेब के बगीचों के विस्तार के लिए वनों का विनाश किया जा रहा है। यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेशों की अवहेलना है। वन भूमि राष्ट्रीय संपत्ति है, जिसे निजी फायदों के लिए नहीं सौंपा जा सकता।
समानता के अधिकार का खुला उल्लंघन
जब सरकार अतिक्रमणकारियों के पक्ष में खड़ी होती है, तो यह अनुच्छेद 14 का अपमान है। हिमाचल प्रदेश में अमीर किसान और रसूखदार लोग वन भूमि पर कब्जा जमा रहे हैं। दूसरी ओर, कानून का पालन करने वाले आम नागरिकों और गरीबों को यह छूट नहीं मिलती। गरीबों को घर बनाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, जबकि संपन्न लोग जंगलों में बड़े बंगले बना रहे हैं। बिना केंद्र सरकार की अनुमति के वन भूमि का उपयोग गैर-कानूनी है। इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 भी इसकी इजाजत नहीं देता।
सेब के लिए काटे जा रहे लाखों पेड़
हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन के नाम पर पर्यावरण का कत्लेआम हो रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर साल लाखों पेड़ काट दिए जाते हैं। अतिक्रमणकारी अपने खेतों में धूप लाने के लिए सरकारी जंगलों में आग लगा देते हैं। शिमला जिले में ही लाखों पेड़ सुखाए जाने की आशंका है। पेड़ों को मारने के लिए उनकी खाल उतारी जाती है या रसायनों (Chemicals) का प्रयोग होता है। वन विभाग के अधिकारी अक्सर इन घटनाओं पर आंखें मूंद लेते हैं। भ्रष्टाचार के कारण दोषियों पर कार्रवाई नहीं हो पाती।
बाढ़ और भूस्खलन का बढ़ा खतरा
वनों के अंधाधुंध कटान से हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है। यह नागरिकों के जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) पर सीधा हमला है। पेड़ कटने से मिट्टी का कटाव होता है, जो बाढ़ और भूस्खलन का मुख्य कारण बनता है। सेब बागवानी के लिए वनों का दोहन लंबे समय में खुद किसानों के लिए भी नुकसानदेह है। जलवायु परिवर्तन के कारण अब सेब उत्पादन पर भी बुरा असर पड़ रहा है।
संघों पर सरकार की ‘बी टीम’ होने का आरोप
सेब उत्पादक संघों की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि ये संघ किसानों की आड़ में बड़े अतिक्रमणकारियों को बचाते हैं। ये समूह अक्सर सरकार पर दबाव बनाते हैं ताकि अवैध कब्जों पर कार्रवाई न हो। हाई कोर्ट ने जुलाई 2025 में वन भूमि से बगीचे हटाने का आदेश दिया था। इसके बाद 3,800 से अधिक पेड़ काटे गए थे। हालांकि, राजनीतिक दबाव के चलते सरकार कड़े कदम उठाने से बचती नजर आती है। यह पूरा गठजोड़ पर्यावरण संरक्षण के बजाय आर्थिक और राजनीतिक लाभ को प्राथमिकता दे रहा है।
Author: Surender Papata
