Shimla News: हिमाचल प्रदेश में नदी-नालों के किनारे अवैध निर्माण बढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार के 2012 के निर्देशों के बावजूद नो कंस्ट्रक्शन जोन अब तक चिह्नित नहीं हो पाए हैं। आपदा के उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में लोग बस गए हैं। इससे बाढ़ और भूस्खलन के दौरान जान-माल का नुकसान बढ़ रहा है।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। नदी-नालों के किनारे बसे 69 अर्ध शहरी क्षेत्र आपदा के लिहाज से संवेदनशील हैं। इन क्षेत्रों में 541 गांवों के 91,399 घर हैं। करीब 4,75,962 लोग इन खतरनाक इलाकों में रह रहे हैं।
आईआईटी रोपड़ की रिपोर्ट ने उठाए सवाल
आईआईटी रोपड़ की अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल का 40% क्षेत्र उच्च जोखिम वाला है। नदी-नालों के किनारे बने भवन सबसे अधिक खतरे में हैं। एसडीएमए की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि अनियंत्रित निर्माण तेजी से बढ़ रहा है। कुल्लू-मनाली सहित पर्यटन स्थलों पर नियमों का सबसे अधिक उल्लंघन हो रहा है।
पिछले तीन साल में नदी-नालों के किनारे बने 979 घर और व्यापारिक प्रतिष्ठान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हुए हैं। 3,228 संरचनाओं को आंशिक नुकसान हुआ है। 2023 में 420 मकान पूरी तरह ध्वस्त हुए। 2024 में अब तक 432 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके हैं।
नियमों का पालन नहीं
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एक्ट के नियमों के अनुसार नाले से निर्माण की न्यूनतम दूरी पांच मीटर होनी चाहिए। खड्ड से निर्माण की दूरी सात मीटर तय की गई है। बाढ़ संभावित क्षेत्रों में निर्माण प्रतिबंधित है। पर्यावरणविद डॉ. एसएस रंधावा का कहना है कि नदियों के पुराने रास्तों पर निर्माण रोकना जरूरी है।
राज्य सरकार ने निर्माण नियंत्रण के लिए नई पहल की है। पंचायत सचिवों को निदेशक टीसीपी की शक्तियां दी जाएंगी। नगर एवं ग्राम नियोजन मंत्री राजेश धर्माणी ने बताया कि ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। इसे जल्द लागू किया जाएगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में नियमों का पालन सुनिश्चित हो सकेगा।
