Shimla News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक स्कूल लेक्चरर को बड़ी राहत प्रदान की है। न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की अदालत ने लेक्चरर की याचिका स्वीकार करते हुए सरकार को उसे ग्रांट-इन-एड राशि जारी करने का आदेश दिया है। अदालत ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की सेवाओं के नियमितीकरण पर विचार किया जाए। यह फैसला सरकारी शिक्षकों के अधिकारों को मजबूत करने वाला है।
अदालत ने 3 जनवरी 2019 के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें विभाग ने लेक्चरर की ग्रांट-इन-एड की मांग को खारिज कर दिया था। न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि वह याचिकाकर्ता के पक्ष में ग्रांट-इन-एड को स्वीकृत करे। यह राशि याचिकाकर्ता को आठ सप्ताह के भीतर जारी की जानी है। देरी होने पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज का प्रावधान किया गया है।
यह राहत लेक्चरर (कॉमर्स) के पद पर उनकी सेवा अवधि के लिए दी गई है। यह सेवा कुनिहार के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में 11 मई 2018 से की गई थी। इस दौरान याचिकाकर्ता पहले पीटीए और बाद में स्कूल प्रबंधन समिति के आधार पर कार्यरत थे। अदालत ने सरकार के नीतिगत निर्णय को याचिकाकर्ता पर लागू करने का आदेश दिया।
सरकारी नीति और याचिकाकर्ता का मामला
सरकार ने 10 अक्टूबर 2022 को एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लिया था। इस निर्णय के तहत 3 जनवरी 2008 के बाद नियुक्त पीटीए शिक्षकों को लाभ दिए जाने का फैसला किया गया। इन लाभों में ग्रांट-इन-एड जारी करना और सेवाओं का नियमितीकरण शामिल था। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता भी इसी श्रेणी में आता है।
याचिकाकर्ता को सबसे पहले 10 अक्टूबर 2008 को लेक्चरर के पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने 1 जुलाई 2014 तक लगातार सेवाएं दीं। इसके बाद एक अनुबंध शिक्षक की नियुक्ति के कारण 2018 तक उनकी सेवाएं बंद रहीं। मई 2018 में पद खाली होने पर उन्हें फिर से एसएमसी की ओर से नियुक्त कर दिया गया।
अदालत की टिप्पणी और राज्य की जिम्मेदारी
न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता 13 वर्षों से अधिक समय से शिक्षण कार्य कर रहा है। ऐसे में वह सरकारी नीति के तहत समान लाभ का हकदार है। अदालत ने यह भी महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि राज्य को एक मॉडल नियोक्ता के रूप में कार्य करना चाहिए। राज्य का यह दायित्व है कि वह कम मानदेय पर शोषण न करे।
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 23 का हवाला दिया जो जबरन श्रम और शोषण पर रोक लगाता है। न्यायालय का मानना था कि कम वेतन पर लंबे समय तक काम कराना शोषण की श्रेणी में आ सकता है। इसलिए सरकार को शिक्षकों के साथ न्यायसंगत व्यवहार करना चाहिए। यह फैसला अन्य समान केसों के लिए एक मिसाल कायम करता है।
याचिकाकर्ता वर्षों से बहुत कम मानदेय पर अपनी सेवाएं दे रहा था। अदालत ने सरकार के निर्णय में याचिकाकर्ता को शामिल न करने को गलत ठहराया। न्यायालय ने कहा कि नीति का लाभ सभी योग्य शिक्षकों को मिलना चाहिए। इससे शिक्षकों के मनोबल में वृद्धि होगी और शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी।
भविष्य की कार्रवाई
अब राज्य सरकार के पास आठ सप्ताह का समय है याचिकाकर्ता को ग्रांट-इन-एड राशि जारी करने का। साथ ही याचिकाकर्ता की सेवाओं के नियमितीकरण पर भी विचार करना होगा। यह मामला शिक्षकों के अधिकारों और सरकारी नीतियों के कार्यान्वयन से जुड़ा है। इस फैसले से राज्य के अन्य शिक्षकों को भी न्याय की उम्मीद मिलेगी।
यह फैसला केवल एक शिक्षक तक सीमित नहीं है। यह एक सिद्धांत स्थापित करता है कि राज्य को अपने कर्मचारियों के साथ उचित व्यवहार करना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कानून का शासन सभी पर समान रूप से लागू होता है। सरकारी विभागों को अपने निर्णय पारदर्शी और न्यायसंगत तरीके से लेने चाहिए।
