Himachal News: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने शिक्षा विभाग पर 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। यह जुर्माना एक कर्मचारी को उसके नियमितीकरण के लिए बार-बार अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर करने और अदालत के निर्देशों की अवहेलना करने के लिए लगाया गया है। न्यायालय ने विभाग को चार सप्ताह के भीतर यह राशि याचिकाकर्ता को भुगतान करने का निर्देश दिया है।
अदालत ने व्यक्त की कड़ी नाराजगी
न्यायाधीश संदीप शर्मा की पीठ ने शिक्षा विभाग के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताई। अदालत ने इसे अहंकारपूर्ण करार देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता लगभग 20 वर्षों से निर्बाध रूप से कार्यरत है और सरकारी खजाने से वेतन प्राप्त कर रहा है। ऐसे में उसकी नियुक्ति को अनियमित बताकर नियमितीकरण से इनकार करना पूरी तरह से अनुचित है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता 23 जून, 2006 से नाहन कॉलेज में दैनिक वेतन भोगी के रूप में कार्य कर रहा था। उसने चौकीदार और स्वीपर जैसे चतुर्थ श्रेणी के पदों पर लगातार सेवाएं दीं। उसने सरकार की नियमितीकरण नीति के तहत अपनी सेवाएं स्थायी करने के लिए आवेदन किया, लेकिन विभाग ने उसे अस्वीकार कर दिया।
अदालत के पिछले निर्देशों की अवहेलना
इस मामले में अदालत ने पहले भी विभाग को निर्देश दिए थे। 16 अक्टूबर, 2020 को एकल पीठ ने विभाग को याचिकाकर्ता के मामले पर विचार करने का आदेश दिया था। इसके बाद 4 अप्रैल, 2024 और 11 दिसंबर, 2024 के आदेशों में अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि याचिकाकर्ता योग्य है तो उसे नियमित किया जाना चाहिए।
विभाग ने जारी रखी जिद
अदालत के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, शिक्षा विभाग ने 8 जनवरी, 2025 को याचिकाकर्ता का आवेदन फिर से खारिज कर दिया। विभाग ने दावा किया कि उसकी प्रारंभिक नियुक्ति नियमों के अनुसार नहीं हुई थी। इसी आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता फिर से हाईकोर्ट पहुंचा।
न्यायालय का अंतिम आदेश
न्यायालय ने विभाग के इस फैसले को रद्द कर दिया। अदालत ने प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता की सेवाओं को 2013 से नियमित करने का आदेश दिया। यह नियमितीकरण 28 जून, 2014 की नीति के तहत चार सप्ताह के भीतर किया जाना है। साथ ही, विभाग को याचिकाकर्ता को 50,000 रुपये का जुर्माना भी भुगतान करना होगा।
