Himachal News:हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य के स्कूलों में हेडमास्टर के 300 खाली पदों को पदोन्नति के माध्यम से न भरने पर सरकार की कड़ी आलोचना की है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने इस कदम को शिक्षकों के मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है। अदालत ने कहा कि पदोन्नति के लिए विचार किया जाना एक कर्मचारी का मौलिक अधिकार है, जिसे सरकार वित्तीय प्रभाव के नाम पर अनदेखा नहीं कर सकती .
वित्तीय कारणों से रोकना उचित नहीं
हाईकोर्ट नेस्पष्ट किया कि वित्तीय असर उन पदों पर पदोन्नति देने में बाधा नहीं बन सकता जो पहले से स्वीकृत और कैडर का हिस्सा हैं . सरकार द्वारा पदोन्नति न देने का एकमात्र कारण प्रमोशन के वित्तीय प्रभाव को बताया जा रहा था। अदालत ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यह कर्मचारियों के अधिकारों का हनन है। इससे याचिकाकर्ता समेत कई शिक्षकों की पदोन्नति प्रभावित हो रही है .
चार महीने से डीपीसी सिफारिशों का इंतजार
बैठक केबाद लगभग चार महीने बीत जाने के बावजूद डीपीसी की सिफारिशों पर अमल नहीं हुआ है . अदालत को बताया गया कि हेडमास्टर पदों पर पदोन्नति के लिए 28 जुलाई 2025 को डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमेटी की बैठक हुई थी। इस बैठक में सिफारिशें भी तैयार कर ली गई थीं। मगर शिक्षा विभाग ने अभी तक प्रमोशन लिस्ट जारी नहीं की है .
सेवानिवृत्त हो रहे शिक्षक को अंतरिम राहत
मामलेकी गंभीरता को देखते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता शिक्षक को अंतरिम राहत प्रदान की है। यह शिक्षक 29 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त हो रहा था . अदालत ने आदेश दिया कि यदि याचिकाकर्ता की याचिका स्वीकार होती है, तो वह देय तिथि से पदोन्नति सहित सभी परिणामी लाभों का हकदार होगा। इससे उसे सेवानिवृत्ति के बाद वित्तीय लाभ मिल सकेगा .
शिक्षा विभाग से मांगा जवाब
हाईकोर्ट नेइस मामले में राज्य सरकार से जवाब तलब किया है . न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ ने याचिकाकर्ता विनोद कुमार की याचिका की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किए। अदालत ने शिक्षा सचिव और स्कूल शिक्षा निदेशक को आरोपों पर जवाब देने का निर्देश दिया है . इससे विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है।
पदोन्नति की तारीख से मिलते हैं लाभ
अदालत नेएक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि आम तौर पर किसी कर्मचारी की पदोन्नति वास्तविक पदोन्नति की तिथि से मान्य होती है . यह लाभ उस तिथि से नहीं मिलते जब डीपीसी द्वारा नाम की सिफारिश की गई थी। इसलिए पदोन्नति में हो रही देरी से कर्मचारियों को वित्तीय नुकसान हो रहा है। अदालत ने इसे तर्कसंगत नहीं माना है .
राज्य सरकार की जिम्मेदारी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट नेस्पष्ट किया कि पदोन्नति पर विचार करना कर्मचारी का अधिकार है . इस अधिकार का हनन सरकार पहले डीपीसी न बुलाकर और फिर उसकी सिफारिशों को लागू न करके नहीं कर सकती। अदालत ने कहा कि सालों से हेडमास्टर के पद खाली रहने से प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की दयनीय स्थिति उजागर होती है . इस मामले में अगली सुनवाई का इंतजार है।
