Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रबोध सक्सेना के सेवा विस्तार के मामले में केंद्र और राज्य सरकारों से पूरा रिकॉर्ड तलब किया है। याचिकाकर्ता अतुल शर्मा ने सक्सेना के छह महीने के सेवा विस्तार को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने इस विस्तार के औचित्य की जांच के लिए दोनों सरकारों से जवाब मांगा है। केंद्र सरकार को विस्तार को मंजूरी देने के सटीक कारण बताने होंगे।
हाईकोर्ट ने उस कानूनी प्राधिकार पर भी स्पष्टता मांगी है जिसके तहत केंद्र ने यह मंजूरी दी। केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि जनहित को देखते हुए सक्सेना का कार्यकाल बढ़ाने के राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार किया गया। याचिकाकर्ता ने 28 मार्च 2025 के आदेश को रद्द करने की मांग की है। इस आदेश में सक्सेना की सेवा अवधि 30 सितंबर 2025 तक बढ़ाई गई थी।
ऊना में अवैध कटान पर संज्ञान
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ऊना में खैर के पेड़ों की अवैध कटाई पर गंभीर चिंता जताई है। ऊना निवासी संजीव कुमार की शिकायत पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दर्ज की गई। इसमें ऊना जिले में खैर के पेड़ों की कटाई पर चिंता जताई गई। वन विभाग ने मामले में हलफनामा दाखिल किया है।
विभाग ने शिकायतकर्ता के पुराने मामलों और लगाए गए दंडों का उल्लेख किया। विभाग ने स्वीकार किया कि खैर-प्रदान क्षेत्रों के पेड़ों की गणना जीपीएस लोकेशन के साथ की जानी है। न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए कहा कि विभाग ने स्वयं स्वीकार किया है कि तीन वन अधिकारियों को आरोपपत्र दिए गए हैं।
अवैध तस्करी की आशंका
न्यायालय ने नोट किया कि ऊना वन मंडल एक सीमावर्ती मंडल है। पंजाब के लिए कई निकास मार्ग होने के कारण प्रमुख लकड़ी बाजारों तक आसान पहुंच है। इससे अवैध तस्करी सुगम होती है। विभाग ने यह भी स्वीकार किया कि 1 अप्रैल 2022 से 605 वाहन बिना कानूनी दस्तावेजों के पकड़े गए हैं।
इन तथ्यों के मद्देनजर न्यायालय ने मामले में सहायता के लिए एक अधिवक्ता को न्याय मित्र नियुक्त किया है। मामले की अगली सुनवाई 24 दिसंबर को होगी। हाईकोर्ट ने वन विभाग से विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत ने अवैध कटान रोकने के उपायों की भी जानकारी मांगी है।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की बर्खास्तगी को मंजूरी
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की बर्खास्तगी के आदेश को सही ठहराया है। याचिकाकर्ता जिला मंडी में आंगनबाड़ी केंद्र में कार्यरत थी। उसे बार-बार अनुशासनहीनता और आदेशों की अवहेलना के लिए 27 जून 2024 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
न्यायाधीश ज्योत्सना रिवॉल दुआ ने पाया कि याचिकाकर्ता ने अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशों का बार-बार उल्लंघन किया। मामला पंचायत और ग्रामीणों की शिकायतों से शुरू हुआ था। इसमें आंगनबाड़ी केंद्र को याचिकाकर्ता के घर से हटाकर महिला मंडल भवन में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी।
अनुशासनहीनता का मामला
बाल विकास परियोजना अधिकारी ने 13 अप्रैल 2023 को केंद्र को महिला मंडल भवन में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने आदेश का पालन नहीं किया। उसने केंद्र को अपने जेठ के घर में स्थानांतरित कर दिया। अधिकारियों ने कई बार केंद्र स्थानांतरित करने के निर्देश दोहराए।
जब निर्देशों की पालना नहीं हुई तो हाईकोर्ट में सिविल रिट याचिका दायर की गई। अदालत ने 21 अक्तूबर 2023 को केंद्र को स्थानांतरित करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने इस आदेश का भी पालन नहीं किया। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अनुशासनहीनता का स्पष्ट मामला है।
न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति को विकृत या असंगत नहीं कहा जा सकता। अदालत ने बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखा। इसने सरकारी कर्मचारियों के लिए अनुशासन के महत्व पर जोर दिया। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से दायर अपील खारिज कर दी गई।
