Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण के एक मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 का उल्लंघन करने पर ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत के आदेशों को रद्द कर दिया है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने सिविल सूट के लंबित रहने तक विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। अदालत ने माना कि अंतरिम राहत देने के लिए सभी आवश्यक शर्तें याचिकाकर्ता के पक्ष में हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला प्रतिकूल कब्जे के दावे से संबंधित है। सहायक कलेक्टर प्रथम श्रेणी को इस स्थिति में खुद को सिविल कोर्ट में परिवर्तित करना अनिवार्य था। राजस्व प्राधिकरण की इस कर्तव्य पालन में विफलता ने उनके आदेश को दोषपूर्ण बना दिया। अपीलीय अदालत का यह अवलोकन भी गलत था कि याचिकाकर्ता को धारा 163 की उपधारा 5 के तहत अपील दायर करनी चाहिए थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामलाnसरकारी भूमि पर अतिक्रमण के आरोप से शुरू हुआ था। भू-राजस्व अधिनियम की धारा 163 के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ बेदखली की कार्रवाई शुरू की गई थी। याचिकाकर्ता ने नोटिस के जवाब में प्रतिकूल कब्जे का दावा पेश किया था। उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिकूल कब्जे के दावे की स्थिति में सहायक कलेक्टर को सिविल कोर्ट के रूप में कार्य करना चाहिए था।
सहायक कलेक्टर ने इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया और सीधे आदेश पारित कर दिए। इसके बाद याचिकाकर्ता ने सिविल कोर्ट का रुख किया। उन्होंने दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 39, नियम 1 और 2 के तहत अंतरिम राहत के लिए आवेदन किया। निचली अदालतों ने इस आवेदन को खारिज कर दिया था।
निचली अदालतों का रुख
निचली अदालतों ने याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करते हुए कहा था कि राजस्व रिकॉर्ड में भूमि सरकार के नाम दर्ज है। अदालतों का मानना था कि याचिकाकर्ता के पक्ष में प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। इस निर्णय के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि अंतरिम राहत देने के लिए आवश्यक सभी सामग्री याचिकाकर्ता के पक्ष में थी। अदालत ने प्रथम दृष्टया मामला, सुविधा का संतुलन और अपूरणीय क्षति जैसे पहलुओं पर विचार किया। इन सभी मानदंडों पर याचिकाकर्ता का पक्ष मजबूत पाया गया।
हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण अवलोकन
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब अतिक्रमण की कार्रवाई में प्रतिकूल कब्जे का दावा किया जाता है तो प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। सहायक कलेक्टर को खुद को सिविल कोर्ट में परिवर्तित करके कार्रवाई करनी चाहिए। इस प्रक्रिया का पालन न करना कानूनी त्रुटि मानी जाएगी।
अदालत ने यह भी माना कि अपीलीय अदालत का यह अवलोकन गलत था कि याचिकाकर्ता को धारा 163 की उपधारा 5 के तहत अपील दायर करनी चाहिए थी। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने सही कानूनी रास्ता चुना था। उन्होंने सिविल कोर्ट में उचित remedies की मांग की थी।
अदालत ने बनाए रखी यथास्थिति
हाईकोर्ट ने सिविल सूट के निपटारे तक विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है। इससे याचिकाकर्ता को तब तक राहत मिलेगी जब तक मुख्य मामले का फैसला नहीं हो जाता। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता को अपूरणीय क्षति होने का खतरा था।
यह फैसला भूमि विवादों में कानूनी प्रक्रिया के सही पालन पर जोर देता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि राजस्व अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया का सख्ती से पालन करना चाहिए। किसी भी प्रकार की प्रक्रियात्मक त्रुटि उनके आदेशों को दोषपूर्ण बना सकती है। इस फैसले से समान मामलों में लोगों को कानूनी मार्गदर्शन मिलेगा।
