Shimla News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को पदोन्नति से केवल आपराधिक मामलों की लंबितता के आधार पर नहीं रोका जा सकता. यह तब और मजबूत हो जाता है जब मामले में आरोप पत्र दायर नहीं किया गया हो. न्यायाधीश संदीप शर्मा ने यह फैसला सुनाया.
अदालत ने राज्य सरकार और पुलिस विभाग को याचिकाकर्ता को ऑनरेरी असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर पदोन्नत करने का आदेश दिया. पदोन्नति उस तारीख से प्रभावी होगी जब उनके कनिष्ठ सहयोगियों को पदोन्नत किया गया था. सभी संबंधित लाभ भी प्रदान किए जाएंगे.
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता वीर सिंह वर्तमान में ऑनरेरी कांस्टेबल के पद पर कार्यरत हैं. उनके खिलाफ 2011 में एक एफआईआर दर्ज की गई थी. यह मामला चरस बरामदगी के एक अन्य आपराधिक मामले से जुड़ा था. विभागीय जांच में उन्हें 2012 में दोषमुक्त कर दिया गया था. लेकिन आपराधिक मामला अभी तक लंबित था.
पुलिस विभाग ने बार-बार अनट्रेंसड रिपोर्ट दायर की, लेकिन न्यायालय ने इसे स्वीकार नहीं किया. इसके बावजूद विभाग ने वीर सिंह को पदोन्नति नहीं दी. इसी कारण उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया.
कोर्ट का तर्क
अदालत ने हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग के स्टैंडिंग ऑर्डर का उल्लेख किया. इसमें प्रावधान है कि यदि विभागीय जांच या आपराधिक जांच लंबित है तो डीपीसी की सिफारिश सील्ड कवर में नहीं रखनी चाहिए. इसका अपवाद तभी हो सकता है जब विभागीय जांच में आरोप पत्र जारी हो या आपराधिक मामले में आरोप पत्र दाखिल किया गया हो.
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी कर्मचारी को पदोन्नति से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक कि उसके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल न हो जाए. चूंकि याचिकाकर्ता विभागीय जांच में दोषमुक्त हो चुका है और आपराधिक मामले में अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ है, इसलिए उन्हें पदोन्नति देने से रोका नहीं जा सकता.
