Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल प्रदेश पथ परिवहन निगम के अनुबंध कंडक्टरों को नियमितीकरण का महत्वपूर्ण आदेश दिया है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की अदालत ने एचआरटीसी को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को सांकेतिक अनुबंध नियुक्ति दी जाए। उनकी सेवाएं 11 अप्रैल 2025 से नियमित की जाएंगी। याचिकाकर्ता इस नियमितीकरण के सभी मौद्रिक लाभों के भी हकदार होंगे। निगम को यह पूरी प्रक्रिया छह सप्ताह के भीतर पूरी करने के आदेश दिए गए हैं।
मामला वर्ष 2019 में विज्ञापित 568 पदों से संबंधित है। इनमें से 47 उम्मीदवारों के शामिल न होने पर वेटिंग पैनल से 11 मार्च 2022 को 47 लोगों को नियुक्त किया गया था। रिकॉर्ड के अनुसार 32 और पद खाली रह गए थे क्योंकि उम्मीदवारों ने प्रशिक्षण के दौरान नौकरी छोड़ दी थी। एचआरटीसी ने इन पदों को वेटिंग पैनल से नहीं भरा था।
अदालत ने स्पष्ट किया कि नियुक्ति में हुई देरी के लिए याचिकाकर्ता नहीं बल्कि एचआरटीसी की निष्क्रियता जिम्मेदार थी। इसी कारण याचिकाकर्ताओं को पहले लक्ष्मी दत्त मामले में याचिका दायर करनी पड़ी थी। कोर्ट के निर्देशों के बाद ही याचिकाकर्ताओं को 18 सितंबर 2024 को अनुबंध कंडक्टर के रूप में नियुक्ति मिल पाई थी।
वर्कचार्ज का दर्जा देने के निर्देश
एक अन्य मामले में प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को वर्कचार्ज का दर्जा देने के निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश रंजन शर्मा की अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को उनकी आठ साल की निरंतर सेवा पूरी होने की तारीख से छह सप्ताह के भीतर यह दर्जा दिया जाए। यह दर्जा सांकेतिक लाभ के साथ मिलेगा, पिछले बकाया के साथ नहीं।
याचिकाकर्ता जनवरी 1995 में पीडब्ल्यूडी में दैनिक वेतनभोगी बेलदार के रूप में नियुक्त हुआ था। उसकी सेवाएं 2007 में नियमित की गईं। लेकिन उसने वर्ष 2003 से नियमितीकरण और वर्कचार्ज स्थिति का लाभ मांगा था। राज्य ने तर्क दिया था कि अगस्त 2005 में वर्कचार्ज श्रेणी समाप्त कर दी गई थी।
अदालत ने खारिज की राज्य सरकार की अपील
प्रदेश हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने कांस्टेबल पद पर नियुक्ति के एकल जज के फैसले को सही ठहराया। यह नियुक्ति नियुक्ति की तारीख से प्रभावी होगी।
याचिकाकर्ता संदीप कुमार को आपराधिक मामलों में सम्मानजनक रूप से बरी कर दिया गया था। अदालत ने माना कि उसे नियुक्ति से वंचित करना न्यायोचित नहीं था। राज्य सरकार का तर्क था कि याचिकाकर्ता ने आवेदन फॉर्म में अपने खिलाफ दर्ज मामलों का उल्लेख नहीं किया था।
अदालत ने माना कि जब प्रतिवादी की उम्र 18-19 वर्ष थी तब उसने यह अविवेकपूर्ण कृत्य किया था। ऐसे व्यक्ति को सुधार का अवसर दिया जाना चाहिए। उसे जीवन भर के लिए अपराधी का तमगा नहीं दिया जा सकता। यह नियुक्ति वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे होगी।
