Himachal News: Himachal Pradesh हाईकोर्ट ने शिक्षकों के वेतन और पदोन्नति को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने शिक्षकों की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपने जूनियर कर्मचारियों के बराबर वेतन की मांग की थी। न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवॉल दुआ की अदालत ने स्पष्ट किया कि पदोन्नति का विकल्प चुनने के बाद कर्मचारी वेतन विसंगति का दावा नहीं कर सकते। यह फैसला राज्य के शिक्षा विभाग में कार्यरत हजारों कर्मचारियों के लिए एक नजीर बन गया है।
क्या है पूरा मामला?
याचिकाकर्ता विनोद कुमार सूद और अन्य ने Himachal Pradesh हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। ये सभी 2010 से पहले टीजीटी (TGT) के रूप में नियुक्त हुए थे। इनकी मांग थी कि उन्हें उन जूनियर कर्मचारियों के बराबर वेतन मिले, जो उनसे ज्यादा सैलरी ले रहे हैं। साथ ही उन्होंने प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति के लिए प्रवक्ताओं का कोटा तय करने की मांग भी की थी। अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं ने पदोन्नति के लिए खुद ‘प्रवक्ता’ बनने का विकल्प चुना था।
रास्ता अलग चुनने पर नहीं मिलेगा लाभ
अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए नियमों को स्पष्ट किया। Himachal Pradesh शिक्षा विभाग के नियमों के मुताबिक, मुख्याध्यापक (Headmaster) से प्रधानाचार्य बनने के लिए 3 साल की सेवा जरूरी है। वहीं, प्रवक्ता (Lecturer) से प्रधानाचार्य बनने के लिए यह अवधि 8 साल है। याचिकाकर्ताओं के जूनियरों ने मुख्याध्यापक बनने का विकल्प चुना था। इस कारण वे वरिष्ठता सूची में जल्दी आगे बढ़ गए और प्रधानाचार्य बन गए।
विकल्प चुनने के बाद बदलाव संभव नहीं
हाईकोर्ट ने नीलम कौशल बनाम हिमाचल राज्य मामले का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि 26 अप्रैल 2010 के बाद सभी पदोन्नतियां कर्मचारियों द्वारा चुने गए विकल्पों पर आधारित थीं। एक बार किसी कर्मचारी ने अपनी मर्जी से कोई कैडर चुन लिया, तो वह बाद में उसे बदल नहीं सकता। चूंकि याचिकाकर्ताओं ने खुद प्रवक्ता बनने की राह चुनी थी, इसलिए वे अब हेडमास्टर चैनल से प्रमोट हुए जूनियरों से तुलना नहीं कर सकते।
याचिका में देरी भी बनी वजह
Himachal Pradesh हाईकोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ताओं ने समय रहते भर्ती और पदोन्नति नियमों को चुनौती नहीं दी थी। अदालत ने कहा कि यह याचिका ‘विलंब और देरी’ के सिद्धांत के तहत भी स्वीकार करने योग्य नहीं है। जूनियरों ने एक विशिष्ट श्रेणी चुनकर तरक्की पाई है, इसलिए याचिकाकर्ता अब वरिष्ठ होने का दावा नहीं कर सकते। अदालत ने इसे योग्यताहीन मानते हुए केस बंद कर दिया।
