Himachal News: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भूमि सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत स्वीकृत समय सीमा में भूमि का उपयोग शुरू करना ही कानूनी रूप से पर्याप्त है। पूरी परियोजना को इस अवधि में पूरा करना आवश्यक नहीं है। यह फैसला सोलन जिले में एक आवासीय परियोजना के मामले में आया है।
न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने मेसर्स स्प्रिंगडेल रिसॉर्ट्स एंड विला प्राइवेट लिमिटेड की याचिका पर सुनवाई की। कंपनी ने सोलन जिले में एकीकृत आवास परियोजना के लिए 2021 में तीन साल की अनुमति प्राप्त की थी। नगर नियोजन विभाग ने फरवरी 2024 में कंपनी की संशोधित योजनाओं पर कार्रवाई से इनकार कर दिया था।
विभागीय निर्णय को किया खारिज
विभाग ने तर्क दिया था कि धारा 118 की अनुमति की वैधता समाप्त हो चुकी है। न्यायालय ने इस दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि विधानमंडल ने जानबूझकर ‘उपयोग में लाना’ शब्द का प्रयोग किया था। ‘परियोजना पूरी करो’ शब्दों को विधेयक में शामिल नहीं किया गया था।
इससे स्पष्ट होता है कि स्वीकृत अवधि के भीतर प्रगति दिखाना ही कानूनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए पर्याप्त है। कंपनी ने अदालत में तर्क दिया कि निर्माण कार्य पहले से ही चल रहा था। कोविड-19 महामारी और विभागीय स्वीकृतियों में देरी के कारण कार्य प्रभावित हुआ था।
अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण
न्यायालय ने विभाग के रवैये को विरोधाभासी पाया। अधिकारियों ने मूल तीन साल की अवधि समाप्त होने के केवल दस दिन बाद ही अनुमति समाप्त घोषित कर दी। इस समय तक सक्रिय निर्माण कार्य शुरू हो चुका था। न्यायमूर्ति गोयल ने स्पष्ट किया कि विभाग ने अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है।
विभाग की भूमिका केवल संशोधित योजनाओं की जांच तक सीमित थी। धारा 118 के अनुमोदन की वैधता पर सवाल उठाने का अधिकार विभाग को नहीं है। न्यायालय ने कहा कि कंपनी ने स्वीकृत उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग शुरू कर अपने कानूनी दायित्व पूरे कर लिए थे।
कानूनी प्रावधान स्पष्ट
हिमाचल प्रदेश काश्तकारी एवं भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की धारा 118 विशेष प्रावधान करती है। इसके तहत भूमि का उपयोग स्वीकृत उद्देश्य के लिए निर्धारित समय सीमा में शुरू किया जाना आवश्यक है। न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए इस बात पर जोर दिया कि कानून में ‘उपयोग में लाना’ और ‘परियोजना पूरी करना’ अलग-अलग अवधारणाएं हैं।
राज्य सरकार का अनुमति समाप्त करने का निर्णय गलत पाया गया। न्यायालय ने विभाग को निर्देश दिया कि वह कंपनी की संशोधित भवन योजनाओं पर उचित तरीके से विचार करे। इस फैसले से अन्य समान परियोजनाओं के लिए भी मार्गदर्शन मिलेगा।
