Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सरकारी कर्मचारी द्वारा अपने सेवा रिकॉर्ड में जन्म तिथि सुधारने की मांग को ठुकरा दिया है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की पीठ ने एकल पीठ के पहले के फैसले को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि सेवा के आखिरी दौर में ऐसा बदलाव स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
अदालत ने अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्देशों का जिक्र किया। हिमाचल प्रदेश वित्तीय नियम 1971 के नियम 7.1 का हवाला देते हुए पीठ ने स्पष्ट किया। इस नियम के मुताबिक कोई भी कर्मचारी सेवा में शामिल होने के सिर्फ दो साल के भीतर ही जन्मतिथि में सुधार का आवेदन दे सकता है। इस समयसीमा के बाद आवेदन स्वीकार नहीं किए जाते हैं।
याचिकाकर्ता कर्मचारी ने दावा किया था कि उसने समय पर 2002 में आवेदन कर दिया था। लेकिन अदालत ने इस दावे को खारिज कर दिया। पीठ ने देखा कि याचिकाकर्ता ने स्वयं 2014 में एक दीवानी मुकदमे में अदालत को बताया था। उसने कहा था कि उसे अपनी सही जन्मतिथि का पता नवंबर 2014 में ही चला था। इसलिए वह अब 2002 में आवेदन की बात नहीं कह सकती थी।
अदालत ने एक और महत्वपूर्ण कमी की ओर इशारा किया। याचिकाकर्ता ने जो दीवानी मुकदमा दायर किया था उसमें उसके नियोक्ता यानी विभाग को पक्षकार ही नहीं बनाया गया था। अदालत ने इससे याचिकाकर्ता के दावे की विश्वसनीयता और कमजोर होने की बात कही। इस तरह के मामलों में सभी संबंधित पक्षों को मुकदमे में शामिल करना जरूरी होता है।
याचिकाकर्ता ने जल शक्ति विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर अप्रैल 2000 में नौकरी शुरू की थी। उसके सेवा रिकॉर्ड में जन्मतिथि छह जनवरी 1969 दर्ज थी। वह इसे बदलकर इक्कीस अक्टूबर 1969 करना चाहती थी। उसका कहना था कि यही उसकी वास्तविक जन्मतिथि है जो ग्राम पंचायत के रिकॉर्ड में है।
विभाग ने उसके आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसके पास ऐसे किसी आवेदन का कोई रिकॉर्ड नहीं है। इसके बाद ही याचिकाकर्ता ने पहले एकल पीठ और फिर खंडपीठ का रुख किया। लेकिन दोनों ही स्तरों पर उसे राहत नहीं मिली। अदालत ने नियमों का कड़ाई से पालन करने पर जोर दिया है।
