Shimla News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने वन भूमि से अवैध अतिक्रमण हटाने के आदेशों को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि 31 अक्टूबर 2025 की समयसीमा लागू रहेगी। अदालत ने कहा कि अतिक्रमणकारियों को बेदखल करने की प्रक्रिया में कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी। यह आदेश राज्य में वन संरक्षण के लिए एक अहम फैसला माना जा रहा है।
अदालत ने अपने आदेश में 2002 की अतिक्रमण नियमितीकरण नीति पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की। खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इस नीति में वन भूमि पर किए गए अतिक्रमण को वैध बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए, वन भूमि पर कब्जा करने वाले किसी भी व्यक्ति को इस नीति के तहत कोई लाभ नहीं मिलेगा। यह फैसला अतिक्रमणकारियों के लिए एक बड़ा झटका है।
प्रशासनिक रिपोर्ट्स ने पुष्टि की अतिक्रमण
कोर्ट के समक्ष शिमला के उपायुक्त द्वारा दाखिल हलफनामे से अतिक्रमण के तथ्य स्पष्ट हुए। इस दस्तावेज में स्वीकार किया गया कि अतिक्रमण वन भूमि पर ही हुआ है। इसी तरह, मुख्य वन संरक्षक शिमला ने अपने अनुपालन हलफनामे में भी यही बात दोहराई। इन आधिकारिक रिपोर्ट्स ने अदालत के फैसले को मजबूत आधार प्रदान किया है।
हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद प्रशासन के हाथों में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई तेज करने का स्पष्ट मार्गदर्शन है। अदालत ने प्रशासन और वन विभाग को निर्देश दिया कि वन भूमि की सुरक्षा के लिए कानून का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। इससे अवैध कब्जे हटाने की प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है।
पर्यावरण संरक्षण और कानून का शासन
विशेषज्ञों का मानना है कि वन भूमि पर अतिक्रमण रोकना पर्यावरण संरक्षण के लिए अत्यंत आवश्यक है। उनका कहना है कि यह फैसला कानून के शासन और सार्वजनिक हित को मजबूती प्रदान करता है। विशेषज्ञों ने प्रशासन से जनता में जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने का भी सुझाव दिया है।
स्थानीय अधिकारियों ने अदालत के आदेश का पालन करने की प्रतिबद्धता जताई है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई निर्धारित समयसीमा के भीतर पूरी कर ली जाएगी। इस फैसले से स्पष्ट संदेश गया है कि वन भूमि पर अवैध कब्जे को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यह निर्णय भविष्य में ऐसे अतिक्रमणों पर अंकुश लगाने में मददगार साबित होगा।
