Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 23 साल बाद एक कांस्टेबल के सेवा लाभ बहाल करने का आदेश दिया है। अदालत ने उसकी 10 साल की वेतन वृद्धि रोकने और 4 साल की सेवा जब्त करने के आदेश को भी रद्द कर दिया। यह मामला 2002 का है, जब कांस्टेबल होशियार सिंह पर सुरक्षा चूक का आरोप लगा था।
जांच में नहीं मिले थे कोई सबूत
हाईकोर्ट ने पाया कि जांच रिपोर्ट में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं था। किसी गवाह ने भी नहीं कहा था कि होशियार सिंह ने संदिग्ध व्यक्ति को देखा था। अदालत ने कहा कि घुसपैठिया न तो उनके ड्यूटी क्षेत्र में आया था और न ही बाहर गया था। अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए कोई आधार नहीं था।
2002 की घटना से जुड़ा मामला
18 फरवरी 2002 को शिमला के मुख्यमंत्री आवास पर एक व्यक्ति ने कांटेदार तार पार कर घुसपैठ की थी। वह अपना बैग छोड़कर भाग गया। इसके बाद होशियार सिंह और तीन अन्य कर्मियों के खिलाफ जांच शुरू हुई। उन पर ड्यूटी के दौरान लापरवाही बरतने का आरोप लगा।
जांच प्रक्रिया थी मनमानी
अदालत ने कहा कि जांच प्रक्रिया मनमानी थी। जांच अधिकारी के निष्कर्षों के आधार पर होशियार सिंह को दंडित किया गया। उनकी 10 साल की वेतन वृद्धि रोक दी गई और बाद में 4 साल की सेवा जब्त कर ली गई। विभाग ने उनकी अपील और पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी थी।
न्यायालय ने किया साफ
न्यायाधीश सत्येन वैद्य की अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना सबूत के सजा देना न्यायसंगत नहीं है। अदालत ने 2002, 2003 और 2004 के सभी दंडात्मक आदेशों को रद्द कर दिया। इस फैसले के बाद होशियार सिंह को उनके सेवा लाभ वापस मिल गए हैं।
