Himachal News: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक चौंकाने वाले मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने 16 साल के एक किशोर पर 7 साल की बच्ची के साथ रेप के मामले में वयस्क की तरह मुकदमा चलाने की अनुमति दी है। यह फैसला किशोर न्याय बोर्ड के आदेश को सही ठहराते हुए आया है।
मामले की विस्तृत जानकारी
मामला तब सामने आया जब 7 साल की पीड़िता ने बताया कि वह आरोपी के घर खेलने गई थी। घर लौटते समय उसे पेट में दर्द हुआ। पूछताछ में बच्ची ने बताया कि आरोपी ने उसे गौशाला में ले जाकर यौन शोषण किया। पुलिस ने आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत मामला दर्ज किया।
कोर्ट का महत्वपूर्ण तर्क
न्यायमूर्ति राकेश कैंथला की पीठ ने मेडिकल रिपोर्ट को महत्वपूर्ण माना। रिपोर्ट के अनुसार आरोपी का आईक्यू 92 था और वह अपने कृत्य के परिणाम समझने में सक्षम था। कोर्ट ने कहा, “आरोपी ने पीड़िता को धमकी देकर चुप रहने को कहा, जो साबित करता है कि वह अपने कार्य की गंभीरता समझता था।”
कानूनी प्रक्रिया पर फैसला
आरोपी ने दावा किया था कि किशोर न्याय अधिनियम की धारा 14(3) के तहत तीन महीने में जांच पूरी नहीं हुई। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि यह समयसीमा अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने आरोपी की मानसिक स्थिति का सही आकलन किया था।
मामले की कानूनी यात्रा
मामले की शुरुआत में किशोर न्याय बोर्ड ने आरोपी को वयस्क की तरह ट्रायल के लिए भेजा था। आरोपी ने पहले सेशन कोर्ट और फिर हाईकोर्ट में याचिका दायर की, लेकिन दोनों जगह से उसे राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट ने केस को X बनाम कर्नाटक राज्य मामले के सिद्धांतों के आधार पर निपटाया।
न्यायालय का अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी किसी मानसिक या शारीरिक कमजोरी से पीड़ित नहीं है। कोर्ट ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि कुछ दस्तावेज बोर्ड तक नहीं पहुंचे, मेडिकल रिपोर्ट को कमजोर नहीं ठहराया जा सकता।” अदालत ने आरोपी की याचिका खारिज करते हुए बाल न्यायालय में वयस्क की तरह ट्रायल जारी रखने का आदेश दिया।
