शुक्रवार, दिसम्बर 19, 2025

हिमाचल प्रदेश सरकार का बड़ा ऐलान: क्रिकेटर रेणुका ठाकुर को एक करोड़ रुपये के पुरस्कार पर सवाल, खो-खो चैंपियन नीता राणा के साथ ‘सौतेले व्यवहार’ का आरोप

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Himachal News: हिमाचल प्रदेश सरकार के एक फैसले ने खेल जगत में एक नई बहस छेड़ दी है। सरकार ने राज्य की बेटी और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर को हाल ही में हुए महिला विश्व कप 2025 में शानदार प्रदर्शन के लिए एक करोड़ रुपये की पुरस्कार राशि देने की घोषणा की है। हालांकि, इस कदम की सराहना के साथ-साथ सोशल मीडिया पर सवाल भी उठ रहे हैं। यूजर्स ने कुल्लू जिले की नीता राणा का मामला उठाया है, जो खो-खो विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा रही हैं, लेकिन उन्हें अब तक इस तरह के बड़े सम्मान से नवाजा नहीं गया है।

सोशल मीडिया पर यूजर्स ने तेजी से इस मुद्दे को उठाते हुए एक अभियान चला रखा है। उनका मुख्य तर्क यह है कि अगर एक विश्व कप विजेता क्रिकेटर को एक करोड़ रुपये मिल सकते हैं, तो दूसरी विश्व कप विजेता खिलाड़ी के साथ यह भेदभाव क्यों? लोग सरकार की खेल नीति पर सीधे सवाल खड़े कर रहे हैं और इसे क्रिकेट बनाम अन्य खेलों में होने वाले भेदभाव का प्रतीक बता रहे हैं। इस पूरे विवाद ने प्रदेश सरकार के लिए एक बड़ी परीक्षा खड़ी कर दी है।

विश्व स्तरीय उपलब्धि फिर भेदभाव क्यों?

यूजर्स की मांग है कि नीता राणा को भी रेणुका ठाकुर के बराबर यानी एक करोड़ रुपये की सम्मान राशि दी जानी चाहिए। उनका कहना है कि दोनों खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और प्रदेश का नाम रोशन किया है। दोनों की उपलब्धि विश्व स्तरीय है, फिर सम्मान में यह अंतर उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस तरह के फैसले से क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों में करियर बनाने वाले युवाओं का मनोबल टूटता है। युवा स्पोर्ट्स पर्सनैलिटीज भी इस मसले पर अपनी राय रख रहे हैं और सरकार से समान व्यवहार की मांग कर रहे हैं।

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रेणुका ठाकुर का विश्व कप 2025 में योगदान

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने महिला वनडे विश्व कप 2025 में इतिहास रचते हुए पहली बार खिताब अपने नाम किया। इस जीत में रेणुका ठाकुर की भूमिका काफी अहम रही। एक रिपोर्ट के अनुसार, फाइनल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भारत ने 52 रनों से शानदार जीत दर्ज की थी। टीम की इस सफलता में गेंदबाजी और फील्डिंग का बहुत बड़ा योगदान रहा। रेणुका ठाकुर ने अपनी स्विंग गेंदबाजी से टूर्नामेंट के दौरान कई महत्वपूर्ण विकेट लेकर भारत को जीत दिलाने में मदद की। उनके प्रदर्शन की देश भर में सराहना हुई है।

नीता राणा का खो-खो विश्व कप में रोल

वहीं दूसरी ओर, नीता राणा ने खो-खो के विश्व कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया और विजेता टीम का हिस्सा रहीं। खो-खो एक पारंपरिक भारतीय खेल है जिसमें भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता मिली। एक विश्व कप जीतना किसी भी खिलाड़ी के लिए सर्वोच्च उपलब्धि मानी जाती है। इसके बावजूद नीता राणा और उनकी टीम को राज्य सरकार से मिलने वाले सम्मान को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर चल रही बहस का सार यही है कि उपलब्धि चाहे किसी भी खेल की हो, उसे समान नजरिए से देखा और सम्मानित किया जाना चाहिए।

सरकार की खेल नीति पर उठते सवाल

यह घटना सिर्फ दो खिलाड़ियों के पुरस्कार तक सीमित मामला नहीं रह गया है। यह बहस अब प्रदेश और देश की खेल नीति पर एक बड़ा सवाल बन गई है। आलोचकों का मानना है कि क्रिकेट को अन्य खेलों पर एक तरह की तरजीह दी जाती है, जबकि हॉकी, कबड्डी, खो-खो और मुक्केबाजी जैसे खेलों में देश को विश्व स्तर पर सफलताएं मिल रही हैं। इस भेदभाव का असर युवाओं के खेल चुनाव पर पड़ता है। कई लोग सिर्फ इसलिए क्रिकेट की ओर रुख करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें पैसा और पहचान ज्यादा है। सरकार के इस कदम को इसी मानसिकता का विस्तार माना जा रहा है।

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सोशल मीडिया पर जनभावना का दबाव

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह मुद्दा काफी तेजी से फैल रहा है। हैशटैग के जरिए लोग नीता राणा के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं। सैकड़ों पोस्ट और कमेंट्स में लिखा जा रहा है कि सरकार को इस भेदभाव को तुरंत खत्म करना चाहिए। जनता का दबाव अब साफ दिखाई दे रहा है। स्थानीय निवासी और खेल प्रेमी सरकार से अपेक्षा कर रहे हैं कि वह नीता राणा के योगदान को भी उसी सम्मान से देखेगी, जिस सम्मान से वह रेणुका ठाकुर को देख रही है। अब पूरा फोकस इस बात पर है कि हिमाचल प्रदेश सरकार इस सार्वजनिक मांग पर क्या प्रतिक्रिया देती है।

सरकार के फैसले का भविष्य पर असर

सरकार का अगला कदम न केवल नीता राणा के भविष्य के लिए अहम होगा, बल्कि इसका प्रदेश के हजारों युवा खिलाड़ियों पर भी गहरा असर पड़ेगा। अगर सरकार ने इस मांग को स्वीकार करते हुए नीता राणा को समान सम्मान दिया, तो इससे क्रिकेटेत्तर खेल खेलने वाले एथलीट्स का हौसला बढ़ेगा। वहीं, अगर सरकार ने इस मुद्दे को नजरअंदाज किया, तो इससे युवाओं का खेलों के प्रति विश्वास डगमगा सकता है। यह फैसला हिमाचल प्रदेश की खेल संस्कृति को लंबे समय तक परिभाषित करेगा। इसलिए, सरकार के सामने यह एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण निर्णय है।

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