Shimla News: हिमाचल प्रदेश की सहारा योजना के तहत मिलने वाली वित्तीय सहायता अटक गई है। पिछले तीन महीनों से गंभीर बीमारियों से पीड़ित मरीजों को उनकी मासिक आर्थिक सहायता नहीं मिल पा रही है। प्रभावित लोग लगातार अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन उन्हें बजट न होने का हवाला दिया जा रहा है।
इस योजना के तहत कैंसर, थैलेसीमिया और हीमोफीलिया जैसी घातक बीमारियों के मरीजों को हर महीने तीन हजार रुपये मिलते हैं। यह राशि उनके इलाज और दवाओं के खर्च में सहायता के लिए दी जाती है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग इस सहायता पर निर्भर हैं।
मरीजों की मुश्किलें बढ़ीं
राशि न मिलने से मरीजों को गंभीर परेशानी हो रही है। शिमला के कुफरी निवासी लाल सिंह ने बताया कि तीन महीने से उन्हें पैसा नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि हर बार फोन करने पर अधिकारी बजट न जारी होने की बात कहते हैं। इससे उनके इलाज में बाधा आ रही है।
मंडी की पैरा एथलीट अंजली ठाकुर की स्थिति भी ऐसी ही है। वह नवंबर से अपनी आर्थिक सहायता का इंतजार कर रही हैं। अंजली को राज्य सरकार द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। वह और उनके परिजन लगातार कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन ही मिल पा रहा है।
प्रशासन से संपर्क नहीं
इस मामले की जानकारी लेने के लिए स्वास्थ्य सचिव एम सुधा से फोन पर संपर्क करने का प्रयास किया गया। लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। इसी तरह स्वास्थ्य मंत्री धनीराम शांडिल से बात करने का प्रयास किया गया, तो उन्हें व्यस्त बताया गया। इससे मामले की स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पा रही है।
सिरमौर जिले के मनवा गांव की कौशल्या देवी दिव्यांग हैं। उन्होंने बताया कि सहारा योजना की राशि उनके लिए जीवनरेखा के समान है। उनके पिता नहीं हैं और पति ने भी उन्हें छोड़ दिया है। तीन महीने से राशि न मिलने से उनकी मुश्किलें बहुत बढ़ गई हैं।
योजना का उद्देश्य
सहारा योजना का मुख्य उद्देश्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। इसके तहत क्रोनिक किडनी फेल्योर जैसी स्थायी अक्षमता वाली बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को भी शामिल किया गया है। लंबे इलाज के दौरान यह वित्तीय सहायता बहुत मददगार साबित होती है।
हिमकेयर योजना के तहत भी मरीजों के उपचार में दिक्कतें आ रही हैं। विधानसभा में भी आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के मामले कई बार उठ चुके हैं। इन योजनाओं का सही क्रियान्वयन न होना गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
मरीजों का कहना है कि सरकारी योजनाओं पर अमल करने में गंभीरता नजर नहीं आ रही है। उन्हें लगता है कि उनकी समस्याओं की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इस स्थिति में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।
