Himachal News: राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी ने स्पष्ट किया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने धारा 118 में किसी भी प्रकार का संशोधन नहीं किया है। उन्होंने मंगलवार को शिमला में पत्रकारों से बातचीत में यह बात कही। मंत्री ने विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर के आरोपों को पूरी तरह गलत बताया। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है।
नेगी ने जोर देकर कहा कि धारा 118 में बदलाव करना विधानसभा की मंजूरी के बिना संभव ही नहीं है। उन्होंने बताया कि सरकार ने केवल धार्मिक संस्थाओं को इस धारा के तहत सीमित छूट देने का प्रस्ताव रखा था। यह प्रस्ताव विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित हुआ था।
मंत्री ने आरोप लगाया कि उस समय भाजपा के किसी भी विधायक या नेता प्रतिपक्ष ने इसका विरोध नहीं किया। उनका कहना है कि अब विपक्ष जानबूझकर जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। सरकार पारदर्शिता के साथ काम कर रही है और इस धारा को कमजोर करने का कोई इरादा नहीं है।
हिमाचल प्रदेश की धारा 118 क्या है?
धारा 118 हिमाचल प्रदेश किरायेदारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 का हिस्सा है। इसका मुख्य उद्देश्य राज्य के स्थानीय किसानों और भूमि मालिकों के हितों की रक्षा करना है। यह कानून राज्य को 1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद 1972 में लागू किया गया था।
इस धारा के प्रावधानों के अनुसार, बाहरी लोग यानी गैर-कृषक हिमाचल में जमीन नहीं खरीद सकते। कोई भी व्यक्ति 150 बीघा से अधिक भूमि का मालिक नहीं हो सकता। स्थानीय भूमि स्वामी अपनी जमीन किसी गैर-कृषक को बेच या ट्रांसफर नहीं कर सकते।
धारा 118 का ऐतिहासिक महत्व
यह धारा राज्य की विशेष भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। हिमाचल का भू-क्षेत्र सीमित और पहाड़ी है। ऐसे में बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीद से स्थानीय आबादी और छोटे किसानों के हित प्रभावित हो सकते थे। इसलिए इस कानून को जरूरी माना गया।
यह प्रावधान स्थानीय संसाधनों और सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने में मददगार साबित हुआ है। इसने बाहरी बड़े निवेशकों द्वारा भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाई है। स्थानीय लोगों की जमीन पर उनके अधिकार सुनिश्चित हुए हैं।
वर्तमान राजनीतिक बहस
राजस्व मंत्री के बयान के बाद राज्य में भूमि कानूनों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। विपक्ष सरकार पर भूमि कानूनों में ढील देने की योजना का आरोप लगा रहा है। सरकार इन आरोपों को सिरे से खारिज करती है।
नेगी ने फिर से दोहराया कि धारा 118 को समाप्त करने का कोई प्रस्ताव सरकार के सामने नहीं है। उन्होंने कहा कि विपक्ष बिना किसी आधार के राजनीतिक बयानबाजी कर रहा है। सरकार का ध्यान स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करने पर है।
भूमि कानूनों का सामाजिक प्रभाव
धारा 118 जैसे प्रावधान पहाड़ी राज्यों में विशेष महत्व रखते हैं। इन कानूनों ने स्थानीय समुदायों को भूमि संसाधनों से जोड़े रखने में मदद की है। छोटे किसानों को भूमि हस्तांतरण के दबाव से सुरक्षा मिली है।
यह कानून पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक सिद्ध हुआ है। बाहरी लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर भूमि खरीद से प्राकृतिक संसाधन प्रभावित हो सकते थे। स्थानीय निवासी पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में अधिक रुचि रखते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
विकास और परंपरा के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि कानूनों में आवश्यकता के अनुसार बदलाव होने चाहिए। दूसरी ओर, स्थानीय हितों की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जरूरी है।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि वह किसी भी बदलाव से पहले सभी हितधारकों से विचार-विमर्श करेगी। धारा 118 में संशोधन की कोई योजना फिलहाल नहीं है। सरकार का फोकस मौजूदा कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने पर है।
